Adda More News: जर्मनी के न्यूमार्क-नॉर्ड इलाके में हुई एक ऐतिहासिक खुदाई ने इंसानी इतिहास को लेकर नई जानकारी दी है। इस खुदाई में सामने आया है कि निएंडरथल (Neanderthal) मानव, जिन्हें इंसान का पूर्वज माना जाता है, आज से करीब 1.25 लाख साल पहले बाकायदा “फैट फैक्ट्री” चला रहे थे। यह बात अब तक के विज्ञान और इतिहास की समझ को गहराई से चुनौती देती है।
हड्डियों से चर्बी निकालने की तकनीक निएंडरथल को एक लाख साल पहले ही थी मालूम?
क्या है “फैट फैक्ट्री” का रहस्य?
खुदाई के दौरान वैज्ञानिकों को कम से कम 172 जानवरों की हड्डियां मिलीं जिनमें साफ संकेत थे कि इन्हें जानबूझकर तोड़ा और गर्म किया गया था। इनमें से अधिकतर हड्डियां शरीर के उन हिस्सों की थीं जिनमें अधिक चर्बी पाई जाती है, जैसे कि जांघ और जबड़े की हड्डियां।
अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि निएंडरथल इन हड्डियों को गर्म या उबाल कर इनसे ऊपरी सतह पर तैरने वाली चिकनाई (फैट) को अलग करते थे। इस फैट को वे भविष्य के लिए संरक्षित कर लेते थे ताकि ठंड के मौसम में, जब शिकार करना कठिन हो, उन्हें ऊर्जा की कमी न हो।
वैज्ञानिकों की राय
शोधकर्ताओं का कहना है कि निएंडरथल केवल प्रोटीन आधारित भोजन पर निर्भर नहीं थे। क्योंकि मानव शरीर अधिक मात्रा में प्रोटीन को पचा नहीं सकता, इसलिए उन्होंने ऊर्जा के एक वैकल्पिक स्रोत के रूप में हड्डियों की चर्बी को इस्तेमाल करना शुरू किया।
इस शोध की प्रमुख वैज्ञानिकों में से एक ने कहा, “यह खोज बताती है कि निएंडरथल न सिर्फ तकनीकी रूप से दक्ष थे, बल्कि वे योजनाबद्ध ढंग से अपने भोजन का संरक्षण करना भी जानते थे। यह उन्हें मौसम की चुनौतियों से लड़ने में सक्षम बनाता था।”
इतिहास में नई परत
अब तक यह माना जाता था कि हड्डियों से फैट निकालने की तकनीक लगभग 28,000 साल पहले आधुनिक मानव ने विकसित की थी। लेकिन न्यूमार्क-नॉर्ड में मिले साक्ष्यों से साफ हो गया है कि यह तकनीक उससे लगभग एक लाख साल पहले ही मौजूद थी।
इस खोज के आधार पर इतिहासकारों और पुरातत्वविदों ने इस क्षेत्र को “फैट फैक्ट्री” नाम दिया है, जो निएंडरथल की तकनीकी समझ, रचनात्मकता और जीवित रहने की योजना को दर्शाता है।
क्यों है यह खोज अहम?
यह खोज न केवल निएंडरथल समुदाय के भोजन संग्रह और संरक्षण की क्षमता को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि वे उन्नत सोच और रणनीति के साथ जीवन जीते थे। इससे यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि मानव पूर्वजों में इन्वेंशन और इनोवेशन की भावना कहीं पहले से मौजूद थी, जितना अब तक माना जाता रहा है।
इस अध्ययन से हमें यह जानने का मौका मिलता है कि मनुष्य के पूर्वज किस हद तक सोच सकते थे, और कैसे उन्होंने प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर अपना अस्तित्व बनाए रखा।