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देवउठनी एकादशी पर क्यों किया जाता है तुलसी विवाह, जानिए शुभ मुहूर्त और फल

कार्तिक मास का शुक्ल पक्ष शुभ कर्मों का प्रारंभ माना जाता है। इसी दिन भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह किया जाता है, जिससे व्यक्ति को वैवाहिक सुख, सौभाग्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
Faizal HaqueBy Faizal HaqueOctober 25, 20253 Mins Read
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Astrology News: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, और इसी दिन से शुभ एवं मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। इस दिन भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह किया जाता है। यह विवाह “तुलसी विवाह” या “देव प्रबोधिनी एकादशी” के नाम से प्रसिद्ध है।

तुलसी विवाह कब करना चाहिए?

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, तुलसी विवाह कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को करना सबसे शुभ माना गया है। यह विवाह पूर्णिमा तक भी किया जा सकता है, क्योंकि इस अवधि में भगवान विष्णु के जागरण का समय रहता है। हालांकि देवउठनी एकादशी को इसका सबसे प्रमुख मुहूर्त कहा गया है।

भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को चार महीने (चातुर्मास) के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि में सभी मांगलिक कार्य, जैसे विवाह, उपनयन, गृहप्रवेश आदि वर्जित रहते हैं। जब भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को योगनिद्रा से जागते हैं, तो पुनः शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।

पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवी तुलसी (वृंदा) एक परम पतिव्रता नारी थीं। उनके पति जालंधर की मृत्यु के बाद भगवान विष्णु ने वरदान स्वरूप तुलसी को एक दिव्य रूप और मोक्ष प्रदान किया। तुलसी माता का विवाह शालिग्राम रूप में भगवान विष्णु से हुआ। तभी से तुलसी‑शालिग्राम विवाह की परंपरा शुरू हुई।

तुलसी विवाह का आयोजन घर, मंदिर या घाटों पर विधि‑विधान से किया जाता है। इस दिन तुलसी के पौधे को दुल्हन की तरह सजाया जाता है, उस पर सिंदूर, साड़ी, फूल और श्रृंगार चढ़ाया जाता है। वहीं शालिग्राम जी को दूल्हे के रूप में मंडप में रखकर विवाह मंत्रों के साथ विवाह संपन्न किया जाता है।

तुलसी विवाह के धार्मिक और वैज्ञानिक लाभ

तुलसी विवाह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि प्रकृति की पूजा भी है। तुलसी को माँ का स्थान दिया गया है, जो वातावरण को शुद्ध और ऊर्जावान बनाती है। तुलसी के पत्ते में हजारों औषधीय गुण हैं, जो रोगों के निवारण और मानसिक शांति में मदद करते हैं।

विवाह के बाद घर में तुलसी का पौधा सौभाग्य, समृद्धि और संतति सुख का प्रतीक बनता है। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति तुलसी विवाह आयोजित करता है, उसे कन्यादान के समान पुण्य प्राप्त होता है। साथ ही, पारिवारिक कलह, ग्रहदोष और कष्टों का निवारण होता है।

तुलसी विवाह करने की विधि

  1. प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें और घर या मंदिर में तुलसी के पौधे को रखें।

  2. भगवान शालिग्राम की मूर्ति या फोटो को तुलसी के पास मंडप में स्थापित करें।

  3. तुलसी माता को साड़ी, कुमकुम, फूल, फल, पान और सुपारी से सजाएं।

  4. दीप जलाकर तुलसी और विष्णु भगवान का आवाहन करें।

  5. राम‑सीता या कृष्ण‑राधा विवाह की तरह तुलसी और शालिग्राम का मिलन कराएं।

  6. विवाह के बाद आरती एवं प्रसाद वितरण करें।

तुलसी विवाह का परिणाम

जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक तुलसी विवाह करता है, उसके जीवन में धन‑संपत्ति, वैवाहिक स्थिरता और पुण्य की प्राप्ति होती है। कहा गया है कि “तुलसी विवाह से घर में लक्ष्मी स्वयं निवास करती हैं।”

आयुर्वेद अनुसार, तुलसी की पूजा शरीर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाती है, तनाव कम करती है और वातावरण को भी शुद्ध करती है। इसीलिए यह पर्व आध्यात्मिक संतुलन और मानसिक शांति के लिए भी उपयोगी है।

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