Ranchi News: भारत में जब लोग घाटों पर खड़े होकर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो यह सिर्फ एक धार्मिक क्रिया नहीं बल्कि प्रकृति और विज्ञान का संगम होता है। छठ पूजा हजारों साल पुरानी परंपरा है जिसने समय के साथ न केवल सांस्कृतिक पहचान बनाई बल्कि स्वास्थ्य विज्ञान में भी अपना स्थान सुरक्षित किया।
वेदों में उल्लेख है — “सूर्योऽत्मा जगतस्तस्थुषश्च” — सूर्य समस्त जीवन की आत्मा हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से भी सूर्य की किरणें मानव शरीर के लिए जीवनदायिनी हैं क्योंकि ये विटामिन‑D निर्माण की प्राकृतिक प्रक्रिया को सक्रिय करती हैं। यह हड्डियों, प्रतिरक्षा तंत्र और मानसिक संतुलन के लिए आवश्यक है।
पौराणिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
छठ पर्व के आरंभ को महाभारत काल से जोड़ा गया है। परंपरा के अनुसार कर्ण, सूर्यदेव के परम भक्त थे और प्रतिदिन कमर तक जल में खड़े होकर अर्घ्य देते थे। यह जल उपचार और सूर्योपासना का संयोजन आज भी छठ में दिखाई देता है। आयुर्वेद में इसे ‘कटिस्नान’ कहा गया है, जो शरीर को डिटॉक्स कर कोशिकाओं को सशक्त करता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
छठ की पूजा उदय और अस्ताचल सूर्य दोनों समय की जाती है। यही समय वैज्ञानिक रूप से सबसे संतुलित प्रकाश का होता है — सुबह 6 से 8 बजे और शाम 4 से 6 बजे की धूप में यूवी‑बी किरणों का प्रभाव संतुलित रहता है, जो त्वचा को नुकसान पहुंचाए बिना विटामिन‑D देती हैं।
जब व्रती प्राकृतिक धूप में बिना किसी कृत्रिम सनस्क्रीन के सूर्य स्नान करते हैं, तो शरीर में कैल्शियम और फॉस्फोरस का संतुलन स्वाभाविक रूप से बनता है। साथ ही, लंबा उपवास और ध्यान शरीर के एंडोक्राइन सिस्टम को संतुलित करता है। सूर्य की रोशनी शरीर में मेलाटोनिन और सेरोटोनिन हार्मोन के निर्माण को भी प्रेरित करती है जिससे नींद और मूड दोनों बेहतर होते हैं।
आयुर्वेदिक दृष्टि
आयुर्वेद कहता है कि ‘सूर्य नाड़ी’ हमारे पाचन और आंतरिक अग्नि को नियंत्रित करती है। छठ व्रत के दौरान संयमित आहार, उपवास और ध्यान की प्रक्रिया न सिर्फ पाचन क्रिया को सशक्त करती है बल्कि तनाव और थकान को भी कम करती है। इसके अलावा, सूर्योपासना से शरीर की कोशिकाओं में ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ता है जिससे व्यक्ति ऊर्जावान महसूस करता है।
आधुनिक महत्व
भारत में विटामिन‑D की कमी एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। 2025 की एक रिपोर्ट के अनुसार, शहरी आबादी का लगभग 70% हिस्सा इससे प्रभावित है। ऐसे में छठ पूजा जैसी परंपराएं आधुनिक जीवनशैली में ‘नेचुरल हीलिंग थेरपी’ के रूप में और भी प्रासंगिक हैं।
दिलचस्प तथ्य यह है कि आज पश्चिमी देश “सन‑बाथ” और “हेलियो‑थेरेपी” की सलाह देते हैं, वही सिद्धांत भारत ने हजारों वर्ष पहले छठ पूजा के रूप में अपनाया था। यह पर्व न केवल सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है बल्कि सस्टेनेबल हेल्थ मॉडल भी प्रस्तुत करता है।

