Bihar News: बिहार की राजनीति में इस बार बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। एनडीए और महागठबंधन दोनों गठबंधनों ने पुराने विधायकों में से लगभग 27% को टिकट नहीं दिया है। जनता की नाराजगी और पिछली बार की एंटी‑इनकंबेंसी लहर को देखते हुए अब युवाओं और साफ छवि वाले उम्मीदवारों पर भरोसा जताया जा रहा है।
एनडीए मोर्चे की रणनीति:
भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यू) ने इस बार सीट बंटवारे में सहयोगियों को खास तवज्जो दी है। भाजपा‑जदयू ने 10‑10 सीटें सहयोगी दलों को दीं, जबकि हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को 2 सीटें दी गई हैं। भाजपा ने 17 मौजूदा विधायकों को टिकट से बाहर कर मैथिली ठाकुर, रत्नेश कुशवाहा, सुजीत कुमार सिंह और रमा निषाद जैसे नए चेहरों को उतारा है। जदयू ने भी गोपाल मंडल, वीना भारती और दिलीप राय जैसे वरिष्ठ नेताओं की जगह 24 नई और युवा उम्मीदवारों को मौका दिया है।
महागठबंधन की नई चाल:
विपक्षी राजद‑कांग्रेस गठबंधन में भी इस बार जबरदस्त फेरबदल हुआ है। राजद ने 31 मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं दिया, जबकि कांग्रेस ने 5 पुराने चेहरों को हटाया। राजद ने भरत बिंद, मो. कामरान, भीम यादव, किरण देवी को रिप्लेस करते हुए नई पीढ़ी के उम्मीदवारों को आगे लाया है। कांग्रेस ने अपने हिस्से में शशांत शेखर, उमेर खान, ओम प्रकाश गर्ग और नलिनी रंजन झा जैसे नए नाम जोड़े हैं।
युवाओं पर भरोसा, पुराने समीकरण को चुनौती:
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह चुनाव केवल सत्ता‑परिवर्तन का नहीं बल्कि सियासी सोच के बदलाव का चुनाव है। दोनों गठबंधनों ने यह संदेश दिया है कि बिहार की जनता अब नकारात्मक राजनीति नहीं, बल्कि नई पीढ़ी और अच्छे प्रशासन की चाहत रखती है।
6 और 11 नवंबर को होने वाले मतदान के बाद 14 नवंबर को नतीजे आएंगे। तब तय होगा कि बिहार को यह नया प्रयोग कितना पसंद आया या फिर पुराने समीकरण ही हावी रहे।

