Ranchi News : झारखंड में उर्दू शिक्षक बहाली का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। इस विषय को लेकर लंबे समय से विवाद जारी है और अब झारखंड सरकार के ताजा निर्णय ने इस विवाद को और गहरा कर दिया है। शुक्रवार को राज्य कैबिनेट की बैठक में उर्दू विषय के शिक्षकों से जुड़ा बड़ा फैसला लिया गया। सरकार ने इंटरमीडिएट प्रशिक्षित सहायक आचार्य के 3287 नए पदों को मंजूरी दी है, जो प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त किए जाएंगे। साथ ही, स्नातक प्रशिक्षित सहायक आचार्य के 1052 पद मध्य विद्यालयों में सृजित किए गए हैं। इस तरह कुल 4339 नए पदों को हरी झंडी मिल गई है।
सरकार के इस कदम को लेकर जहां कुछ लोग इसे सकारात्मक पहल बता रहे हैं, वहीं विशेषज्ञों और आवेदकों का मानना है कि सरकार सिर्फ दिखावा कर रही है। वे इसे “आईवाश” यानी सतही सुधार कह रहे हैं, जो मूल समस्या का हल नहीं है।
क्या है मूल समस्या, जो बना है पेंच
दरअसल, सरकार द्वारा स्वीकृत 4339 नए पदों में 38 फीसद पद आरक्षित (26 फीसद अनुसूचित जाति एवं 12 फीसद अनुसूचित जाति) हैं। पूर्व के 4401 पद के लिए भी यही आरक्षण व्यवस्था लागू थी। पांच बार हुए नियुक्ति में भी 38 फीसद आरक्षित पद उम्मीदवार नहीं मिलने के चलते रिक्त रह गए थे। ऐसी व्यवस्था में समान्यत: नियम यह है कि जब आरक्षित अनुसूचित जनजाति एवं जाति के उम्मीदवार नहीं मिले और पद रिक्त रह जाए तो उसे पिछड़े एवं सामान्य जातियों के उम्मीदवारों से भरा जाता है। पुराने स्वीकृत पद 4401 वाले मामलों में 701 अभ्यर्थी की नियुक्ति हुई, जिसमें से कुल 689 अभ्यर्थियों ने योगदान दिया और 3712 पद रिक्त रह गए। अब यदि सरकार ने 4339 नए पदों को स्वीकृत किया है तो पुन: 38 फीसद पद अनुसूचित जनजाति एवं जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हो जाएगें और नियुक्ति में पुन: यह आरक्षित पद आवश्यकता से अधिक रिक्त रह जाएगें, जिससे पेंच बना रहेगा। इसलिए पुराने सृजित पदों में नियुक्ति सीधी होनी चाहिए।
1999 में शुरू हुआ था यह मामला
संयुक्त बिहार के दौर में, वर्ष 1999 में प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में उर्दू सहायक शिक्षकों के 4401 पद योजना मद में सृजित किए गए थे। इसका उद्देश्य था कि उर्दू भाषी छात्रों को उनकी मातृभाषा में उचित शिक्षा दी जा सके। हालांकि, 2000 में झारखंड राज्य बनने के बाद इस बहाली प्रक्रिया में कई अड़चनें आती रहीं। वर्ष 2023 में झारखंड सरकार ने इन 4401 पदों को योजना मद से हटाकर गैर योजना मद में डाल दिया, जबकि इनमें से 701 पदों पर प्राथमिक विद्यालयों में पहले ही बहाली हो चुकी थी।
पे ग्रेड घटाने से गहराया विवाद
सरकार ने वर्ष 2024 में इन पदों को “सहायक आचार्य” नाम देकर इनका पे ग्रेड 4200 से घटाकर 2400 कर दिया। यह फैसला उर्दू शिक्षक उम्मीदवारों को नागवार गुजरा और उन्होंने इसपर आपत्ति जताते हुए झारखंड हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दी। उम्मीदवारों का मानना है कि उर्दू सहायक शिक्षकों का नाम बदलना भी समझ से परे है।
जेपीएससी, जैक और कोर्ट की उठा-पटक
इस बहाली प्रक्रिया के दौरान जेपीएससी (Jharkhand Public Service Commission) ने 2008 और 2010 में दो बार विज्ञापन निकाला, लेकिन किसी भी बार परीक्षा आयोजित नहीं हो सकी। आवेदन तो ले लिए गए, लेकिन प्रक्रिया अधूरी रही। इसके बाद सरकार ने झारखंड एकेडमिक काउंसिल (JAC) को परीक्षा आयोजन की जिम्मेदारी दी। जैक ने फिर से आवेदन लिए, परीक्षा भी करवाई, लेकिन तकनीकी खामी के कारण झारखंड हाई कोर्ट ने पूरी प्रक्रिया को रद्द कर दिया। कोर्ट ने आदेश दिया कि नई नियमावली के तहत पुनः परीक्षा ली जाए।
नई नियमावली 2012 में बनी और उसके आधार पर टेट (TET) परीक्षा आयोजित की गई। इस परीक्षा के बाद 701 पदों पर बहाली हुई, जो कि सिर्फ प्राथमिक विद्यालयों के लिए थी, जबकि मूल रूप से 4401 पद प्राथमिक और मध्य दोनों के लिए स्वीकृत थे।
2015 में अल्पसंख्यक आयोग ने दिया निर्देश
बहाली में हो रही देरी से परेशान आवेदक वर्ष 2015 में राज्य अल्पसंख्यक आयोग पहुंचे। आयोग ने तत्कालीन प्राथमिक शिक्षा निदेशक को कड़ी फटकार लगाई और निर्देश दिया कि स्नातक प्रशिक्षित अभ्यर्थियों से शेष पदों को भरा जाए और उन्हें इंटरमीडिएट प्रशिक्षित शिक्षकों का वेतनमान देने की बात कही गई। लेकिन इसके बाद भी बहाली की प्रक्रिया ठप पड़ी रही। 2025 में सरकार द्वारा 4339 नए पदों की स्वीकृति दी गई है, लेकिन विशेषज्ञ इसे केवल पुराने पदों को नए नाम और कम वेतनमान में समाहित करना बता रहे हैं। इस पूरे विवाद से साफ है कि झारखंड में उर्दू शिक्षकों की बहाली सिर्फ प्रशासनिक मामला नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक भी है।
जरूरत 20 हजार से अधिक शिक्षकों की
प्राथमिक शिक्षा निदेशालय के वर्ष 2024 के आंकड़ों पर गौर करें तो प्राथमिक विद्यालय (कक्षा 1-5) में 4 लाख 30 हजार 572 एवं मध्य विद्यालय (कक्षा 6-8) में 2 लाख 21 हजार 493 अध्ययनरत छात्र-छात्राएं हैं यानी कुल 6 लाख 52 हजार 65 छात्र-छात्राएं उर्दू अध्ययनरत हैं। नियमानुसार प्रति 32 छात्र पर एक उर्दू शिक्षक रखने का प्रावधान है। इस तरह इतने छात्रों के पठन-पाठन में कुल 20 हजार 377 उर्दू शिक्षकों की आवश्यकता है। अल्पसंख्यक विशेषज्ञ एस अली बताते हैं कि मौजूदा सरकार 20 हजार 377 उर्दू शिक्षकों की तुलना में 4339 नए पदों को हरी झंडी देकर सुर्खियां बटोरने में लगी है जबकि आवश्यकता इसके पांच गुना उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति का है।
3529 टेट उतीर्ण, अब तक नियुक्ति महज 701 की
श्री अली बताते हैं कि राज्य सरकार उर्दू सहायक शिक्षकों के कुल 4401 पद के लिए दो बार क्रमश: 2013 एवं 2016 में टेट की परीक्षा आयोजित की। उक्त दोनों परीक्षा में कुल 3529 अभ्यर्थी उतीर्ण होकर नियुक्ति के इंतजार में बैठे रहे। इनमें से 701 अभ्यर्थियों की नियुक्ति प्राथमिक विद्यालयों में कर दी गई जबकि 3700 पद रिक्त रह गए और कुल 3529 टेट उतीर्ण अभ्यर्थी अपनी नियुक्ति के इंतजार में उम्र पार होता देख रहे हैं। थक हारकर उन्होंने इसके खिलाफ हाईकोर्ट की शरण ली है। फिलहाल मामला विचाराधीन है। लेकिन इन सब से स्पष्ट है कि उर्दू शिक्षकों को लेकर सरकार का यह मास्टर स्ट्रोक दरअसल बेवकूफ स्ट्रोक माना जा रहा है।
एस अली, अल्पसंख्यक विशेषज्ञ, रांची

सर्वप्रथम सरकार पुराने सृजित पदों के शेष बचे पदों के विरुद्ध टेट उतीर्ण अभ्यर्थियों को सीधे नियुक्ति करे और फिर उर्दू अध्ययनरत छात्र-छात्राओं की संख्या के अनुसार उर्दू शिक्षकों के पदों को नए रूप में सृजित करे। उनका वेतनमान बढ़ाए और पदों के नाम भी परिवर्तन नहीं करे। राज्य में 13 जिले अनुसूचित जनजाति से हैं जहां काफी संख्या में पिछड़े वर्ग के उर्दू अभ्यर्थी हैं, आरक्षण में इन पिछड़े वर्गों को प्राथमिकता दी जाए क्योंकि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए आरक्षित पद अक्सर रिक्त रह जाते हैं।
