Ranchi News : भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास राजनीतिक साजिशों, सत्ता संघर्षों और विश्वासघात की कई कहानियों से भरा पड़ा है। मुगल साम्राज्य के सबसे संवेदनशील दौर में से एक, औरंगजेब और दारा शिकोह के बीच उत्तराधिकार की लड़ाई, केवल तलवारों और सेनाओं की नहीं, बल्कि विश्वासघात और चालों की लड़ाई भी थी।
9 जून 1659 को घटित एक घटना इस संघर्ष का निर्णायक मोड़ बन गई, जब दादर के बलूची सरदार जीवन खान ने मुगल राजकुमार दारा शिकोह को धोखे से पकड़वाकर औरंगजेब के हवाले कर दिया। यह घटना इतिहास में उस क्षण के रूप में दर्ज है जिसने भारत के भविष्य की दिशा बदल दी।
कौन था दारा शिकोह
दारा शिकोह, मुगल बादशाह शाहजहां का सबसे बड़ा पुत्र और उत्तराधिकारी था। वह न केवल एक राजकुमार था, बल्कि एक विचारशील, धर्मनिरपेक्ष और सूफी दर्शन में विश्वास रखने वाला इंसान भी था। उसकी सोच हिंदू-मुस्लिम एकता की पक्षधर थी। उसने उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया और धर्मों के बीच सेतु बनाने की कोशिश की।
उत्तराधिकार युद्ध का आरंभ
शाहजहां के बीमार पड़ते ही चारों राजकुमारों (दारा शिकोह, औरंगजेब, शुजा और मुराद) के बीच गद्दी की होड़ शुरू हो गई। हालांकि शाहजहां की पसंद दारा शिकोह थे, लेकिन औरंगजेब ने रणनीति, राजनीति और सैन्य ताकत के बल पर इस लड़ाई में अपनी बढ़त बनाई। 1658 में, समरगढ़ की लड़ाई में दारा की हार के बाद वह पश्चिम की ओर भाग निकला और कुछ समय तक अपने वफादारों के साथ अलग-अलग स्थानों पर छिपता रहा।
जीवन खान की भूमिका
जीवन खान, जो पहले दारा शिकोह के विश्वासपात्रों में से एक था, ने दारा को भरोसा दिलाया कि वह उसकी मदद करेगा और उसे सुरक्षित स्थान पर ले जाएगा। लेकिन जैसे ही दारा शिकोह और उसका पुत्र सिपिहर शिकोह जीवन खान के शिविर में पहुँचे, जीवन खान ने अपनी नीयत बदल दी। 9 जून 1659 को उसने धोखे से दारा और उनके पुत्र को पकड़ लिया और औरंगजेब के हवाले कर दिया। औरंगजेब ने इस अवसर का तुरंत लाभ उठाया। दारा शिकोह को दिल्ली लाकर सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया और कुछ ही दिनों बाद उसे मार दिया गया।
क्यों महत्वपूर्ण था यह विश्वासघात
इस विश्वासघात ने न केवल दारा शिकोह की जिंदगी खत्म की, बल्कि भारत में मुगल सत्ता की दिशा को भी बदल दिया। अगर दारा शिकोह को गद्दी मिलती, तो शायद मुगल साम्राज्य एक धर्मनिरपेक्ष और उदार मार्ग पर चलता। लेकिन औरंगजेब के कट्टर और सैन्यवादी शासन ने साम्राज्य को धीरे-धीरे धार्मिक विद्वेष और बगावतों की ओर धकेल दिया।
इतिहास की दृष्टि से जीवन खान
इतिहासकारों ने जीवन खान को एक विश्वासघाती व्यक्ति के रूप में याद किया है, जिसने व्यक्तिगत लाभ या भय के कारण अपने पुराने मित्र और संरक्षक के साथ गद्दारी की। इस एक घटना ने दिखा दिया कि सत्ता के खेल में विश्वास और नैतिकता अक्सर सबसे बड़ी बलि चढ़ाई जाती है।
दारा शिकोह की विरासत
हालांकि दारा शिकोह सत्ता की दौड़ में हार गए, लेकिन आज के भारत में उन्हें धार्मिक सहिष्णुता, ज्ञान और संस्कृति के सेतु के रूप में याद किया जाता है। उनकी अनुवादित रचनाएं आज भी विद्वानों द्वारा पढ़ी जाती हैं। 9 जून 1659 का दिन सिर्फ एक तारीख नहीं है, यह इतिहास का वह मोड़ है जिसने मुगल साम्राज्य की नियति बदल दी। दारा शिकोह का विश्वासघात न केवल एक शख्स की त्रासदी थी, बल्कि एक विचारधारा की हार भी थी। ऐसे क्षण इतिहास में हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि यदि परिस्थितियाँ अलग होतीं, तो शायद आज का भारत एक और ही रास्ते पर होता।