मुजफ्फर हुसैन
Ranchi News : स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त आने में अभी 47 दिन शेष हैं। लेकिन इसकी तैयारियां अभी से ही देश के चहुंओर शुरू कर दी गई है। जैसे तिरंगा फहराने हेतु पोल निर्माण, रंग-रोगन, तिरंगा निर्माण आदि। इस दिन हर देशभक्त अपनी देशभक्ति की भावना से एक-दूसरे को आकर्षित करता है। लेकिन इस देश में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो इस दिन सामने तो नहीं आते लेकिन उनका कार्य इस दिन खुलकर सामने आता है, बावजूद हम उनके कार्य से अनजान होते हैं।
उन्हीं में से एक नाम रांची के हिंदपीढ़ी मोहल्ले के निजाम नगर में रहने वाले मोहम्मद निजाम का है। उनका जीवन देशभक्ति, मेहनत और आत्मीय सेवा का अद्वितीय उदाहरण है। वर्ष 1968 से लेकर अब तक, वह हजारों तिरंगों का निर्माण अपने हाथों से कर चुके हैं। आज, 75 वर्ष की उम्र में भी, उनका उत्साह पहले से भी अधिक दिखता है।
हालांकि वह तिरंगा बनाना एक पूर्णकालिक पेशा नहीं मानते, लेकिन इसे उन्होंने एक कर्तव्य की तरह अपनाया है। उनका मुख्य काम पान की दुकान चलाना है, साथ ही वे बच्चों और बुजुर्गों के लिए छोटी-छोटी जरूरतों का सामान भी बेचते हैं। लेकिन जैसे ही गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस नजदीक आता है, वे दो महीने पहले से तिरंगा सिलने का कार्य शुरू कर देते हैं, ताकि लोगों को समय पर देश का तिरंगा मिल सके।
पैरों से चलने वाली मशीन, मजबूत इरादा
सबसे दिलचस्प बात यह है कि मो निजाम किसी आधुनिक मोटर चालित सिलाई मशीन का इस्तेमाल नहीं करते। उनकी कार्यशैली बहुत खास है। वे अब भी पैरों से चलने वाली सिलाई मशीन से काम करते हैं। उनका यंत्र एक पैर से संचालित होती है। यह मशीन उन्हें पूरी आजादी देती है। लाइट कटने पर भी सिलाई चलती रहती है, बिजली की चिंता नहीं होती।
साधन और जुनून का संगम
मो निजाम के तिरंगा तैयार करने की गति अद्वितीय है। उनके इस कार्य में साधन और जुनून का अनोखा संगम देखने को मिलता है। वे एक घंटे में लगभग 200 तिरंगे तैयार कर लेते हैं। उनका यह कार्य शाम दुकान बंद होने के बाद शुरू होता है। इस तरह रात 9 बजे तक वह 500 से अधिक तिरंगे प्रतिदिन तैयार कर लेते हैं। इस उम्र में इतनी तेजी और निरंतरता अद्भुत है। उनका यह समर्पण केवल काम नहीं, बल्कि सच्चे राष्ट्रप्रेम की भावना को दर्शाता है।
सिर्फ तिरंगा ही सिलूंगा : देश के लिए समर्पण
मो निजाम को कई बार अलग-अलग धार्मिक और राजनीतिक झंडों की सिलाई के लिए आमंत्रित किया गया, लेकिन उन्होंने विनम्रता से इनकार कर दिया। उनका साफ कहना है-“मैं सिर्फ तिरंगा सिलता हूं, क्योंकि मुझे अपने देश से लगाव है।” उन्होंने कभी भी इस काम को पैसों के लिए नहीं किया, बल्कि इस भावना से किया कि जब कोई बच्चा, युवक या बुजुर्ग तिरंगा ले जाए, तो वो गर्व से कहे-“यह हमारे देश का तिरंगा है।”
हर तिरंगा शुद्ध माप और मानक के अनुसार
मो निजाम बताते हैं कि वे हर तिरंगे को मोहर के माप के अनुसार तैयार करते हैं। वे गर्व से कहते हैं, “अब तक एक भी झंडे में गलती नहीं हुई। इंशाअल्लाह आगे भी नहीं होगी। मुझे यह काम करना आता है और देश की सेवा करना अच्छा लगता है।” तिरंगे का हर हिस्सा केसरिया, सफेद, हरा और अशोक चक्र उनके लिए एक आदर्श की तरह है, जिसे वे श्रद्धा और सम्मान से बनाते हैं।
आखिरी सांस तक तिरंगा बनाना ही है मकसद
मो निजाम की एक ही ख्वाहिश है कि जब तक सांस चले, तिरंगे का निर्माण करते रहें। वे कहते हैं-“मैं नहीं चाहता कि कभी तिरंगे की कमी हो। अगर मैं तैयार नहीं करूंगा, तो शायद कुछ लोग वक्त पर तिरंगा नहीं ले पाएंगे। ये सोचकर ही मैं रुकता नहीं।” उनके लिए तिरंगे का सिलना सिर्फ सिलाई नहीं, बल्कि सेवा, संस्कार और संकल्प है।
नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा बनते मो निजाम
मो निजाम की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति का संघर्ष नहीं, बल्कि देशभक्ति, मेहनत और सेवा की मिसाल है। मो निजाम जैसे लोग समाज के असली नायक हैं। वो युवाओं को यह सीख देते हैं कि देशभक्ति कोई नारा नहीं, बल्कि जीवनशैली होती है। हर साल की तरह जब भी 15 अगस्त और 26 जनवरी आती है, उनके बनाए तिरंगे रांची के हर मोहल्ले, स्कूल, गली और घर की छत पर लहराते हैं। बाईक, कार, ट्रक, ट्रेन की खिड़कियों आदि में लहराते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इसके पीछे एक 75 वर्षीय बुजुर्ग की रातों की मेहनत छिपी है। गणतंत्र-दिवस और स्वतंत्रता-दिवस पर पूरा देश तिरंगे की महिमा देखता है। लेकिन मो नेजाम जैसे अनगिनत जिंदादिल लोग इन उत्सवों की नींव रखते हैं।
सेवा की कहानी, प्रेरणा की परिभाषा
मो निजाम का जीवन यह बताता है कि देश के लिए कुछ करना सिर्फ बड़ी बातों से नहीं होता। एक तिरंगे को सलीके से बनाना, उसकी हर रेखा, रंग और चक्र को आदर से गूंथना, यह भी राष्ट्रसेवा का रूप है। आज जब मशीनें और तकनीक हर काम आसान बना चुकी हैं, मो निजाम का अपनी परंपरागत मशीन से काम करना यह साबित करता है कि सेवा और श्रद्धा की कोई उम्र नहीं होती। उनका संदेश साफ है-“काम करते रहो, देश के लिए कुछ करते रहो, क्योंकि यही सच्ची देशभक्ति है।” उनकी कहानी शिक्षा देती है कि देशभक्ति सिर्फ जश्न तक सीमित नहीं होती, वह हर रोज, हर काम में दिखाई देनी चाहिए।
मो नेजाम द्वारा तैयार तिरंगा का आकार और लागत
आकार | लागत |
10 इंच | 2.5 रुपये |
20 इंच | 15 रुपये |
30 इंच | 25 रुपये |
40 इंच | 60 रुपये |
50 इंच | 80 रुपये |