Ranchi News : आदिवासी अस्मिता और सांस्कृतिक विरासत को मजबूत आधार देने के उद्देश्य से रविवार को रांची में एक ऐतिहासिक पहल की गई। स्वर्गीय पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा के आवास पर आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक में “मुंडारी साहित्य परिषद” के गठन की औपचारिक घोषणा की गई। यह परिषद मुंडारी भाषा, साहित्य और संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित संगठन के रूप में कार्य करेगी। बैठक की अध्यक्षता अनुसूचित जनजाति अनुसंधान संस्थान (TRI), रांची के सेवा निवृत्त उप निदेशक सोमा मुंडा ने की। इस आयोजन में राज्यभर से कई प्रबुद्ध साहित्यकार, शोधकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता और भाषा प्रेमी शामिल हुए।
मुंडारी भाषा की गिरती स्थिति में आशा की नई किरण
मुंडारी भाषा झारखंड की समृद्ध आदिवासी परंपरा की महत्वपूर्ण धरोहर रही है। इसकी ध्वन्यात्मकता, व्याकरणिक संरचना और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ अत्यंत विशिष्ट हैं परंतु बीते कुछ दशकों में इसके प्रयोग में निरंतर गिरावट दर्ज की गई है, जिससे इस भाषा की पहचान और अस्तित्व पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। इस परिप्रेक्ष्य में मुंडारी साहित्य परिषद का गठन एक निर्णायक और क्रांतिकारी पहल के रूप में देखा जा रहा है। परिषद का लक्ष्य न केवल भाषा को संरक्षित करना है, बल्कि इसे जीवंत बनाना और नई पीढ़ी को इससे जोड़ना भी है।
कार्यकारिणी समिति का गठन
बैठक में सर्वसम्मति से परिषद की कार्यकारिणी समिति का गठन किया गया। प्रो. सत्यनारायण मुंडा, जो डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति रह चुके हैं और आदिवासी भाषाओं पर लंबे समय से कार्य कर रहे हैं, उन्हें परिषद का अध्यक्ष चुना गया। उपाध्यक्ष पद पर डॉ. बिरेन्द्र कुमार सोय (साहित्यकार और सामाजिक चिंतक), जयमुनी बडयऊद (महिला नेतृत्व की प्रतीक और मुंडारी सांस्कृतिक संवाहिका) एवं मनय मुंडा (सामाजिक कार्यकर्ता और युवा प्रतिनिधि) को नियुक्त किया गया। वहीं, सचिव पद की जिम्मेवारी सर्वसम्मति से डॉ. अजीत मुंडा को सौंपी गई, जो एक युवा शिक्षाविद और आदिवासी भाषा शोधकर्ता हैं। उन्होंने भाषा संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है।
अन्य पदाधिकारियों में शामिल हैं
- उप सचिव-जुरा होरो, डॉ. किशोर सुरिन, विशेश्वर मुंडा, करम सिंह मुंडा।
- कोषाध्यक्ष-डॉ. पार्वती मुंडू (वरिष्ठ शिक्षिका और महिला सशक्तिकरण की समर्थक)
- अंकेक्षक-डॉ. जुरन सिंह मानकी
- विधिक सलाहकार-सुभाष चंद्र कोनगाड़ी (वरिष्ठ अधिवक्ता और आदिवासी अधिकारों के पैरोकार)
परिषद की प्रस्तावित कार्ययोजना और गतिविधियां
- भाषा संरक्षण और मानकीकरण-मुंडारी शब्दों का संकलन और शब्दकोश निर्माण।
- साहित्य सृजन-कविता, कहानी, नाटक, लोकगीत आदि में नवलेखन को बढ़ावा।
- शोध और प्रलेखन-अकादमिक शोध, शोध पत्रिकाएं और प्रकाशन।
- कार्यशालाएं और संगोष्ठियां-शैक्षणिक संस्थानों में भाषा जागरूकता अभियान।
- युवा सहभागिता-युवाओं को भाषा आंदोलन से जोड़ने के लिए विशेष अभियान।
- डिजिटल अभिलेखागार-साहित्य, ध्वनि, वीडियो और मौखिक परंपराओं का डिजिटलीकरण।
- सांस्कृतिक दस्तावेजीकरण-रीति-रिवाज, लोककला, नृत्य-गीत और धार्मिक परंपराओं का संरक्षण।
डॉ. रामदयाल मुंडा को श्रद्धांजलि
बैठक के दौरान वक्ताओं ने पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा के योगदान को श्रद्धा से याद किया और कहा कि परिषद की स्थापना उनके सपनों को साकार करने की दिशा में एक ठोस प्रयास है। परिषद उनकी विचारधारा और सांस्कृतिक चेतना को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम बनेगी। सभी उपस्थित सदस्यों ने सामूहिक रूप से यह संकल्प लिया कि परिषद निरंतर, संगठित और समर्पित प्रयासों से मुंडारी भाषा और संस्कृति की गरिमा को पुनर्स्थापित करेगी। यह संगठन राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भाषा-संस्कृति के क्षेत्र में संवाद और समन्वय को बढ़ावा देगा। यह पहल न केवल एक संगठन के गठन का प्रतीक है, बल्कि यह झारखंड की आदिवासी सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में एक सशक्त शुरुआत है।