Bihar News: बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। ताजा सर्वे से यह साफ संकेत मिला है कि राज्य की राजनीति में किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं है। एक बार फिर जातीय गणित, गठबंधन और कल्याणकारी योजनाएं ही चुनावी नतीजों को तय करेंगी।
मुस्लिम वोटरों का रुझान किस ओर जाएगा?
बिहार की करीब 17 फीसदी मुस्लिम आबादी अब भी महागठबंधन की ओर झुकी नजर आ रही है। 2020 में जहां 75 फीसदी मुस्लिम वोट महागठबंधन को मिले थे, वहीं 2024 लोकसभा चुनाव में यह बढ़कर 83 फीसदी हो गया। समुदाय में यह संदेश साफ है कि वोट बंटवारे का सीधा फायदा बीजेपी को मिलता है। हालांकि, असंतोष भी कम नहीं है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की हाल की यात्राओं में बड़े मुस्लिम नेताओं की गैरमौजूदगी पर नाराजगी जताई जा रही है। इसके अलावा, टिकट बंटवारे में हिस्सेदारी और उपमुख्यमंत्री पद की मांग भी जोर पकड़ रही है।
दलित और अति पिछड़ा वर्ग का समीकरण
दलित समुदाय बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाता है। करीब 20 फीसदी आबादी वाले इस वर्ग में पासवान और मुसहर समुदाय एनडीए के साथ मजबूती से खड़े दिखाई देते हैं। वहीं चमार समुदाय ऐतिहासिक रूप से महागठबंधन की ओर झुकता है। अति पिछड़ा वर्ग, जिसकी आबादी 26 फीसदी है, अब तक एनडीए का मजबूत वोट बैंक माना जाता रहा है। सर्वे के मुताबिक यह रुझान इस बार भी जारी रह सकता है।
ओबीसी मतदाताओं की भूमिका
ओबीसी समुदाय की आबादी करीब 25 फीसदी है और यह चुनावी तस्वीर का अहम हिस्सा है। यादव वोटर (लगभग 11 फीसदी) पूरी तरह से राजद और लालू परिवार के साथ दिखाई दे रहे हैं। वहीं गैर-यादव ओबीसी, जिनमें कुर्मी और कुशवाहा समुदाय शामिल हैं, का रुझान एनडीए की ओर दिखता है। हालांकि, हाल के चुनावों में कुशवाहा समाज महागठबंधन की ओर खिसकता नजर आया है, जिससे तस्वीर और दिलचस्प हो गई है।
कहां किसे फायदा?
सर्वे के मुताबिक महागठबंधन को मगध और भोजपुर क्षेत्रों में नुकसान हो सकता है, जबकि पूर्णिया में सीटों की बढ़त की संभावना है। 2020 में एनडीए ने सात जोन में 52 सीटें जीती थीं, जबकि महागठबंधन तीन जोन में 37 सीटों पर आगे था। अंतिम नतीजों में एनडीए को 125 और महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं।
इस बार भी तस्वीर काफी हद तक वैसी ही बनती दिख रही है। यानी कि बिहार की राजनीति एक बार फिर पारंपरिक वोटिंग पैटर्न और जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है।

