World News: कट्टरपंथी ताकतों ने दुनिया का जीना मुहाल कर रखा है। इनमें से एक समूह यजीदियों का भी है। ISIS के डर से यजीदी समुदाय इराक के उत्तरी-पश्चिमी हिस्से के पहाड़ी इलाकों में रहता है। बीते साल भी यजीदी समुदाय के नेता ने भारत से मदद की गुहार लगाई थी। इराक के अलावा यजीदी जर्मनी, रूस, आर्मेनिया, जॉर्जिया, यूक्रेन, अमेरिका, कनाडा, सीरिया और तुर्की जैसे देशों में रहते हैं।
पूरी दुनिया में इनकी आबादी 20-30 लाख
यजीदियों की संख्या इतनी कम है कि इनके मुद्दे अनदेखे ही रह जाते हैं दुनियाभर में यजीदियों की आबादी 20 से 30 लाख के करीब है। उनका धर्म इस्लाम, हिंदू और ईसाई सबसे अलग है। यह धर्म एक तरह से गुमनाम और रहस्यमय कहा जा सकता है। यजीदियों की मान्यताओं और उनकी उपासना की पद्धति की वजह से इस्लामिक देशों में उन्हें शैतान के उपासक भी कहा जाता है। इनकी ज्यादा संख्या इराक, सीरिया और दक्षिण-पूर्वी तुर्की में है। ये छोटे समुदायों के रूप में रहते हैं। अकसर ये दुनिया से कटे ही रहते हैं। ISIS जैसी कट्टरपंथी ताकतों से सताए जाने की वजह से उनकी संख्या में गिरावट आई है।
पढ़ते हैं बाईबल और कुरआन, मयूर और सूर्य की करते हैं उपासना
यजीदियों की खास बात है कि कोई भी धर्म परिवर्तन करके यजीदी नहीं बन सकता है। यजीदी वही हो सकता है जो यजीदी के ही घर पैदा हुआ हो। यह भी एक वजह है कि यजीदियों की संख्या सीमित है। एक तरफ जहां इस्लाम विस्तारवाद के लिए मशहूर हो गया है। वहीं यजीदी इसके ठीक विपरीत हैं। फारसी भाषा में इजीद का मतलब देवता या फरिश्ता होता है। माना जाता है कि इसी वजह से इस धर्म का नाम यजीदी रखा गया है।
हालांकि कट्टरपंथी समूहों का मानना है कि इनका ताल्लुक उमैयद राजवंश के दूसरे खलीफा यज़ीद इब्न मुआविया से है। कट्टरपंथी यजीद को बुरा शासक मानते थे। इसी वजह से वे यजीदियों से नफरत करने लगे। जानकारों का कहना है कि इस धर्म का यजीद से कोई भी लेना-देना नहीं है। यजीदियों की बहुत सारी मान्यताएं मुस्लिमों, ईसाइयों से मिलती जुलती हैं। वैसे तो ये बाइबल और कुरआन दोनों को मानते हैं लेकिन इनकी ज्यादातर पद्धतियां पारंपरिक रूप से चली आ रही हैं जो कि इस्लाम और ईसाइयों से अलग हैं। उनकी कई मान्यताएं ऐसी हैं जो कि हिंदू धर्म से मेल खाती हैं।
यजीदी महिलाएं भी लाल जोड़ा पहनकर शादी करती हैं। हालांकि इस दौरान वे चर्च में जाती हैं। मुसलमानों की तरह वे जानवरों की कुर्बीनी देते हैं और खतना भी करते हैं। वहीं इस्लाम से विपरीत वे सूर्य और मोर की उपासना करते हैं। यजीदी ईश्वर को इस श्रृष्टि का रचयिता मानते हैं। उनका मानना है कि परमात्मा ने श्रृष्टि के संचालन का कार्य अपने अवतारों को सौंप रखा है।
उनमें ईश्वर के सात अवतारों की मान्यता है जिसमें सबसे प्रमुख मोर का अवतार है जिसे मलक ताउस कहा जाता है। यजीदी मयूर की उपासना करते हैं। यजीदियों के पवित्र स्थल लालिश की एक दीवार पर तस्वीर बनी हुई है जिसमें महिला दीपक जला रही है। उसकी वेशभूषा भारतीय महिला की तरह है। यजीदी सूर्यास्त और सूर्योदय के वक्त पश्चिम और पूर्व में मुंह करके उपासना करते हैं और फिर दीपक जलाकर आरती करते हैं। उसमें व्रत रखने और मुंडन कराने की भी परंपरा है। यजीदी पृथ्वी, जल और अग्नि को पवित्र मानते हैं।