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World News: चीन में रहने वाले करीब सवा दो करोड़ मुसलमानों में सबसे प्रमुख आबादी ‘उइगर’ समुदाय की है, जो अपनी विशिष्ट संस्कृति और धार्मिक पहचान के लिए जानी जाती है। लंबे समय से शिनजियांग प्रांत के भीतर दमन और उत्पीड़न झेलने के बाद लाखों उइगरों ने बेहतर भविष्य की तलाश में सरहदें पार कीं, लेकिन अब उनके लिए विदेश की धरती भी सुरक्षित नहीं रह गई है। चीन अपनी आर्थिक और राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर उन देशों पर दबाव बना रहा है, जहां इन लोगों ने शरण ली है। स्थिति यह है कि अब सुरक्षित ठिकानों से भी उइगरों की ‘जबरन घर वापसी’ का खतरा मंडराने लगा है।
डिटेंशन कैंप से भागे, लेकिन तुर्की और थाईलैंड में फंसा ‘पेंच’
शिनजियांग में चीनी सरकार की पाबंदियां किसी से छिपी नहीं हैं। साल 2017 से 2019 के बीच लगभग 10 लाख उइगरों को डिटेंशन कैंप (नजरबंदी शिविरों) में रखा गया था। कई उइगर अपनी जान बचाकर अमेरिका, यूरोप और तुर्की पहुंचे। तुर्की को कभी उइगरों का सबसे सुरक्षित गढ़ माना जाता था, लेकिन अब खबरें आ रही हैं कि वहां की सरकार चीन के व्यापारिक दबाव के आगे झुक रही है। आरोप है कि तुर्की में रह रहे उइगरों से जबरन ‘चीन वापसी’ के फॉर्म भरवाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में हाल ही में थाईलैंड द्वारा 40 उइगरों को चीन वापस भेजने की घटना ने मानवाधिकार संगठनों के होश उड़ा दिए हैं।
चीन की ‘ब्लैकमेल डिप्लोमेसी’ और वैश्विक चुप्पी
चीन दुनिया भर में यह दुष्प्रचार कर रहा है कि उइगरों को वापसी पर कोई खतरा नहीं है, ताकि उन पर अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी नीतियां (Refugee Policies) लागू न हों। विडंबना यह है कि अमेरिका और यूरोप जैसे देश, जो कभी उइगरों के मानवाधिकारों की बात करते थे, अब अपनी प्रवासी नीतियों को सख्त बना रहे हैं। कई पश्चिमी देश चीन के साथ अपने द्विपक्षीय व्यापारिक हितों को मानवाधिकारों से ऊपर रख रहे हैं।
अंधकारमय भविष्य: फिर वही अमानवीय शिविर और उत्पीड़न
यदि वैश्विक समुदाय ने उइगरों के संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाले समय में हजारों शरणार्थियों को वापस चीन की कम्युनिस्ट सरकार के हवाले कर दिया जाएगा। वापस लौटने का मतलब है फिर से वही नजरबंदी शिविर, जबरन मजदूरी और धार्मिक पहचान को मिटाने वाली अमानवीय स्थितियां। मानवाधिकार संगठनों ने चेतावनी दी है कि उइगरों को वापस भेजना उन्हें ‘मौत के मुंह’ में धकेलने जैसा होगा।
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