Social News: काम, पढ़ाई और मनोरंजन अब पूरी तरह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर निर्भर हो गए हैं। इस डिजिटल बदलाव ने जहां जीवन को आसान बनाया है, वहीं एक गंभीर समस्या “इंटरनेट एडिक्शन” का खतरा भी पैदा किया है। यह लत युवाओं को मानसिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से प्रभावित कर रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि स्मार्टफोन और सोशल मीडिया की बढ़ती मौजूदगी ने ऐसे हालात बना दिए हैं कि युवा घंटों तक स्क्रीन से नजरें नहीं हटा पा रहे हैं। मोबाइल नोटिफिकेशन, रील्स और गेमिंग की आदत दिमाग को लगातार उत्तेजित रखती है। यही कारण है कि जब कुछ समय के लिए इंटरनेट से दूरी बनती है, तो बेचैनी, तनाव और अनिद्रा के लक्षण देखने को मिलते हैं।
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, 16 से 30 वर्ष के बीच के युवा औसतन 6 से 8 घंटे तक प्रतिदिन इंटरनेट पर समय बिता रहे हैं। यह समय न केवल उनकी उत्पादकता को घटा रहा है, बल्कि सामाजिक जीवन के जुड़ाव को भी कमजोर कर रहा है। देर रात तक मोबाइल का इस्तेमाल नींद की गुणवत्ता पर असर डालता है और जैविक घड़ी को असंतुलित कर देता है, जिससे चिड़चिड़ापन और मानसिक थकावट बढ़ जाती है।
मनोचिकित्सकों का कहना है कि यह सिर्फ एक आदत नहीं बल्कि व्यवहारिक विकार बन गया है। लगातार डिजिटल कंटेंट देखने से मस्तिष्क की सहनशीलता कम होती जाती है, जिससे युवा ऑफलाइन गतिविधियों जैसे पढ़ाई, बातचीत या सामान्य कार्यों में जल्द ऊब जाते हैं।
डिजिटल डिटॉक्स है समाधान
विशेषज्ञों के अनुसार, इंटरनेट की लत से बचने के लिए “डिजिटल डिटॉक्स” सबसे बेहतर विकल्प है। यानी रोज कुछ समय तक मोबाइल, लैपटॉप और सोशल मीडिया से दूरी बनाकर खुद को प्रकृति के करीब रखें। योग, ध्यान, पुस्तक पठन और परिवार या दोस्तों के साथ समय बिताना मानसिक शांति बढ़ाने में मदद करता है।
साथ ही, रोज़ाना नींद का एक निश्चित समय तय करें और रात के दौरान स्क्रीन टाइम को सीमित करें। धीरे-धीरे यह प्रक्रिया मस्तिष्क को पुनः संतुलन की ओर ले जाती है और डिजिटल निर्भरता को घटाती है।
इंटरनेट को पूरी तरह छोड़ना संभव नहीं है, लेकिन इसका विवेकपूर्ण उपयोग ही स्वस्थ जीवन की कुंजी है। अगर इस बढ़ती डिजिटल लत को समय पर नियंत्रित न किया गया, तो आने वाले वर्षों में यह युवाओं की ऊर्जा, उत्पादकता और मानसिक स्थिरता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।



