Ranchi News : नागपुरी भाषा परिषद ने आज राजभवन में राज्यपाल से मुलाकात कर नागपुरी भाषा की अस्मिता और पहचान से जुड़े एक गंभीर मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया। परिषद की महासचिव डॉ. शकुन्तला मिश्र ने जानकारी दी कि वरीय सदस्य पद्मश्री मधुमंसुरी हंसमुख के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने ज्ञापन सौंपते हुए जनगणना अभिलेखों में नागपुरी भाषा को लेकर उत्पन्न भ्रम पर चिंता जताई।
परिषद ने कहा कि झारखंड की दूसरी राजभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त नागपुरी भाषा को आज भी अलग-अलग नामों और कोडों के तहत दर्ज किया जा रहा है। भारत सरकार की राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) हेतु जारी अनुदेश पुस्तिका 2020 में नागपुरी को एक बार कोड संख्या 188 (नागपुरिया) और दूसरी बार कोड संख्या 231 (सदान/सादरी) के नाम से अंकित किया गया है। परिषद ने इसे “गंभीर त्रुटि” बताते हुए कहा कि ये दोनों नाम नागपुरी भाषा के उपनाम मात्र हैं, जबकि मूल और मान्य नाम केवल “नागपुरी” ही है।
ज्ञापन में यह भी कहा गया कि इस प्रकार का कृत्रिम विभाजन न केवल भाषा की अस्मिता पर प्रश्नचिह्न लगाता है बल्कि इससे भाषा-भाषियों की वास्तविक संख्या भी प्रभावित होगी। इसके परिणामस्वरूप भविष्य में शैक्षणिक, सांस्कृतिक और नीतिगत स्तर पर गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होंगी।
शिक्षा व्यवस्था में पद सृजन की मांग
परिषद ने राज्यपाल से यह भी आग्रह किया कि प्रदेश के विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के अंतर्गत नागपुरी भाषा के लिए नियमित पद सृजित किए जाएं और शिक्षकों-प्राध्यापकों की नियुक्ति की जाए। परिषद का कहना है कि नागपुरी की पढ़ाई 8वीं कक्षा से लेकर स्नातकोत्तर स्तर तक अनेक शैक्षणिक संस्थानों में जारी है। ऐसे में इस भाषा को “सदान” या “सादरी” के नाम से विभाजित करना शैक्षणिक दृष्टि से न तो उचित है और न ही न्यायसंगत।
राज्यपाल से ठोस पहल की अपेक्षा
परिषद ने उम्मीद जताई कि राज्यपाल केंद्र और राज्य सरकार दोनों से इस मुद्दे पर पहल करेंगे और नागपुरी भाषा को उसकी वास्तविक, एकीकृत और सम्मानजनक पहचान दिलाने का काम करेंगे। प्रतिनिधिमंडल में पद्मश्री मधुमंसुरी हंसमुख, डॉ. शकुन्तला मिश्र, डॉ. सुखदेव साहू, डॉ. राम कुमार और तबरेज मंसुरी शामिल थे।

