Ranchi: झारखंड में मॉब लिंचिंग की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। राज्य अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य वारिस कुरैशी ने चिंता जताते हुए कहा कि सरकार की कोशिशों के बावजूद मॉब लिंचिंग पर प्रभावी कानून अब तक लागू नहीं हुआ है। इसके परिणामस्वरूप अपराधियों के हौसले बुलंद हैं, और असामाजिक तत्वों की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है।
हाल ही में बोकारो जिले के नारायणपुर थाना क्षेत्र में अब्दुल कलाम की पीट-पीटकर हत्या इसका ताजा उदाहरण है। वीडियो में साफ दिख रहा है कि कई लोगों ने मिलकर अब्दुल कलाम की बर्बरता से हत्या की, लेकिन संबंधित थाना प्रभारी ने इसे सामान्य हत्या मानते हुए भारतीय दंड संहिता (BNS) की धारा 103(1) के तहत केस दर्ज किया है। जबकि यह मामला मॉब लिंचिंग का है और इसे धारा 103(2) के तहत दर्ज होना चाहिए था।
प्रशासन पर भेदभावपूर्ण रवैये का आरोप
वारिस कुरैशी ने प्रशासन पर भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इस मामले को दबाने की कोशिश हो रही है, लेकिन अल्पसंख्यक आयोग इसे लीपापोती नहीं होने देगा। जल्द ही आयोग की टीम घटना स्थल और मृतक के परिवार से मुलाकात करेगी और बोकारो पुलिस प्रशासन के साथ बैठक कर उचित कार्रवाई की मांग करेगी।
राज्य में मॉब लिंचिंग कानून की जरूरत
कुरैशी ने कहा कि झारखंड में मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून की जल्द से जल्द जरूरत है। खासतौर पर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ ऐसी घटनाओं पर न तो राजनीतिक दल ध्यान देते हैं और न ही सिविल सोसाइटी। हालांकि, ऑल इंडिया पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ऑन राइट्स (APCR) जैसे संगठन ऐसे मामलों में पीड़ित परिवार को कानूनी मदद और न्याय दिलाने में सक्रिय हैं।
राजनीतिक चुप्पी लोकतंत्र के लिए खतरा
उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र में यह चुप्पी खतरनाक है। किसी की भी हत्या, चाहे परिस्थिति कोई भी हो, कानूनन स्वीकार्य नहीं है। मॉब लिंचिंग कानून के अभाव में अपराधियों का मनोबल बढ़ रहा है। आयोग जल्द ही मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मुलाकात कर कानून निर्माण में आ रही बाधाओं को दूर करने की अपील करेगा।
मॉब लिंचिंग रोकने के लिए ठोस कदम
राज्य सरकार को चाहिए कि मॉब लिंचिंग कानून को लागू कर ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाए। इससे अपराधियों के मनोबल पर असर पड़ेगा और लोग भयमुक्त जीवन जी सकेंगे।