India News: सियासी चौपाल पर शर्त और सौदेबाजी के बगैर राजनीति नहीं हो सकती। इसकी बानगी महाराष्ट्र में दिखी। जहां दो भाई गले मिलने को तैयार हैं लेकिन शर्त है कि… के साथ। राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे से नाता तोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नाम से अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बना ली। अजित पवार ने भी चाचा शरद पवार से नाता तोड़ लिया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में मूल पार्टी पर अधिकार की कानूनी लड़ाई भी जीत ली। इस तरह शरद पवार को दूसरे नाम (एनसीपी-एसपी गुट) से नई राजनीतिक पार्टी बनानी पड़ी। अब इन दोनों परिवारों के एक होने की चर्चाएं बेहद आम हो चुकी है।
राज ठाकरे ने कुछ दिनों पहले एक इंटरव्यू में बड़े भाई उद्धव के साथ आने के संकेत दिए थे। अब उनकी पार्टी के दिग्गज नेता ने राजनीतिक एकता के लिए शर्त रख दी है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के सीनियर लीडर संदीप देशपांडे ने कहा कि पार्टी प्रमुख राज ठाकरे शिवसेना (शिवसेना यूबीटी) के साथ राजनीतिक गठबंधन पर तभी विचार करेंगे जब उस ओर से एक ठोस प्रस्ताव सामने आएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इससे पहले जब एमएनएस ने पहल की थी, तब उसे विश्वासघात का सामना करना पड़ा था। देशपांडे ने राज ठाकरे के हालिया इंटरव्यू का हवाला दिया, जिसमें ठाकरे ने शिवसेना (यूबीटी) के साथ संभावित गठबंधन पर बातचीत की संभावना जताई थी। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में इस साल के अंत में स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं, जिनमें मुंबई, ठाणे, पुणे, नासिक और नागपुर जैसे प्रमुख शहर शामिल हैं।
एमएनएस लीडर देशपांडे ने कहा, अगर शिवसेना (यूबीटी) को लगता है कि एमएनएस के साथ गठबंधन संभव है, तो उन्हें एक ठोस प्रस्ताव के साथ सामने आना चाहिए। उस पर राज ठाकरे फैसला लेंगे। उन्होंने दोहराया कि साल 2014 और 2017 में भी एमएनएस ने पहल की थी, लेकिन हमें धोखा मिला। देशपांडे ने कहा, उस समय हमसे वादा किया गया था, लेकिन उसे निभाया नहीं गया। अब अगर वे हमें साथ चाहते हैं, तो उन्हें राज ठाकरे को औपचारिक और गंभीर प्रस्ताव भेजना होगा।’ देशपांडे ने जोर दिया कि राज ठाकरे ने अपने इंटरव्यू में कहीं भी स्पष्ट रूप से गठबंधन को स्वीकृति नहीं दी है, बल्कि सिर्फ इतना कहा कि अगर शिवसेना (यूबीटी) की रुचि है, तो वे उस पर विचार करेंगे।
जब मनसे नेता देशपांडे से पूछा गया कि क्या एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ शिवसेना ने भी एमएनएस से गठबंधन की कोई पहल की है, तो उन्होंने जवाब दिया कि फिलहाल शिंदे गुट की ओर से कोई औपचारिक संवाद नहीं हुआ है। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की हाल की टिप्पणियों ने राजनीतिक गलियारों में संभावित मेल-मिलाप की अटकलों को जन्म दिया है। दोनों ने संकेत दिया था कि छोटी बातों को नजरअंदाज कर मराठी मानूस के व्यापक हित में साथ आना जरूरी हो सकता है। यह बयानबाजी करीब दो दशक पहले हुई तल्ख जुदाई के बाद रिश्तों में नरमी की ओर इशारा करती है। राज ठाकरे ने 2005 में शिवसेना छोड़कर 2006 में एमएनएस की स्थापना की थी। तब से वे कई बार भाजपा के साथ गठबंधन कर चुके हैं, जो अब शिवसेना (यूबीटी) की मुखर विरोधी पार्टी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह गठबंधन होता है तो मुंबई और अन्य शहरी निकायों में मराठी मतदाताओं के बीच इसका व्यापक प्रभाव हो सकता है। फिलहाल, सभी की निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या उद्धव ठाकरे की पार्टी पहल करती है और राज ठाकरे उस पर क्या रुख अपनाते हैं।