Ranchi : झारखंड उच्च न्यायालय ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में ग्राम सभा को संसाधनों पर अधिकार देने वाले पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (पेसा) की अधिसूचना जारी होने तक राज्य सरकार को किसी भी लघु खनिज खदान की नीलामी करने से रोक दिया। इस आदेश के साथ ही प्रदेशभर में चल रही बालू घाटों की नीलामी प्रक्रिया तत्काल प्रभाव से रुक गई है।
मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने यह आदेश आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की ओर से दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। प्रार्थी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजीत कुमार, अभिषेक राय और ज्ञानंत सिंह ने पक्ष रखा।
दरअसल, अदालत ने पहले ही 29 जुलाई 2024 को आदेश दिया था कि पेसा नियम अधिसूचित होने तक बालू घाटों की नीलामी और पट्टा बंद रखा जाए। लेकिन राज्य सरकार द्वारा इस आदेश का पालन नहीं किए जाने पर याचिकाकर्ता मंच के संयोजक विक्टर माल्टो ने अवमानना याचिका दायर की।
सुनवाई के दौरान जब पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव मनोज कुमार ने जिम्मेदारी मुख्यमंत्री और मंत्रियों पर डालने का प्रयास किया, तो अदालत ने कड़ा रुख अपनाया। न्यायाधीशों ने कहा, “क्या आप चाहते हैं कि हम मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों को जेल भेज दें? यही आप सुझाव दे रहे हैं?” अदालत ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई और साफ कहा कि राज्य सरकार 73वें संविधान संशोधन की मंशा को कमजोर कर रही है।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि सरकार जानबूझकर नियमों को अधिसूचित करने में देरी कर रही है, जबकि इसी बीच बालू घाटों और लघु खनिज खदानों की नीलामी की जा रही है। इससे ग्राम सभाओं को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।
अदालत ने राज्य सरकार को चार सप्ताह का समय देने से साफ इनकार करते हुए केवल दो सप्ताह का समय दिया है और कहा है कि अगली सुनवाई में पेसा नियम अधिसूचना से जुड़ी प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।
इस फैसले के बाद राज्य में खनन से जुड़े कारोबारी और अधिकारी भी असमंजस की स्थिति में हैं। वहीं, आदिवासी संगठनों ने न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुए कहा है कि यह कदम ग्राम सभाओं को अधिकार दिलाने की दिशा में ऐतिहासिक साबित होगा।

