India News: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पिछले महीने की 28 जुलाई को दिल्ली, बंबई, कलकत्ता और कर्नाटक समेत 6 अलग-अलग हाई कोर्ट में न्यायाधीश पद के लिए कई अधिवक्ताओं और न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति की सिफारिश की। देश के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कॉलेजियम ने तीन अधिवक्ताओं आरती अरुण साठे, अजीत भगवानराव कडेथांकर और सुशील मनोहर घोडेश्वर का नाम बॉम्बे हाई कोर्ट में जज के लिए नामांकित किया है लेकिन आरती अरुण साठे के नाम पर विवाद उठ खड़ा हुआ है।
दूसरी तरफ, महाराष्ट्र भाजपा ने रोहित पवार के आरोपों को निराधार बताते हुए खारिज किया है और कहा कि साठे को न्यायाधीश बनाने की सिफारिश पूरी तरह से निर्धारित ढांचे के भीतर योग्यता के आधार पर की गई है। राज्य भाजपा मीडिया प्रकोष्ठ के प्रभारी नवनाथ बान ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, आरती साठे कुछ साल पहले ही भाजपा प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे चुकी थीं। उनका पार्टी से अब कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनकी योग्यता पर सवाल उठाने का कोई कारण नहीं है।
दरअसल, बॉम्बे हाई कोर्ट की अधिवक्ता आरती अरुण साठे मुंबई भाजपा विधि प्रकोष्ठ की प्रमुख थीं, उन्हें फरवरी 2023 में महाराष्ट्र भाजपा का प्रवक्ता नियुक्त किया गया था। हालांकि, साठे ने करीब साल भर बाद ही जनवरी 2024 में व्यक्तिगत और व्यावसायिक कारणों का हवाला देते हुए इस पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने 6 जनवरी, 2024 को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और मुंबई भाजपा विधि प्रकोष्ठ के प्रमुख पद से भी इस्तीफा दे दिया। महाराष्ट्र में विपक्षी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के विधायक और पार्टी सचिव रोहित पवार ने साठे के नाम की सिफारिश पर सवाल उठाया है और कहा है कि न्यायपालिका स्वतंत्र और निष्पक्ष होनी चाहिए। उन्होंने एक्स पर एक स्क्रीनशॉट भी पोस्ट किया जिसमें बताया गया कि साठे सत्तारूढ़ भाजपा से जुड़ी थीं और पार्टी की प्रवक्ता थीं।
एनसीपी विधायक पवार ने साठे के नाम की सिफारिश का विरोध करते हुए कहा, सार्वजनिक मंच से सत्तारूढ़ दल का पक्ष रखने वाले व्यक्ति की हाई कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा आघात है… न्यायाधीश का पद अत्यंत जिम्मेदारी वाला होता है। उसे निष्पक्ष होना चाहिए। जब सत्तारूढ़ दल से किसी को न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है, तो यह निष्पक्षता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है। पवार ने हालांकि, कहा कि वह साठे की योग्यता पर आपत्ति नहीं कर रहे हैं। उन्होंने मांग की कि न्यायाधीश के रूप में साठे के नाम की अनुशंसा पर फिर से विचार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुख्य न्यायाधीश को इस मामले में मार्गदर्शन भी प्रदान करना चाहिए।