Bihar News: बिहार की सियासत में विधानसभा चुनाव से पहले हलचल तेज हो गई है। दरभंगा जिले की अलीनगर सीट पर टिकट को लेकर एनडीए में खींचतान साफ दिखाई दे रही है। चर्चा में संजय कुमार सिंह उर्फ पप्पू सिंह का नाम है, लेकिन जातीय गणित और राजनीतिक समीकरण उन्हें कमजोर दावेदार बना रहे हैं।
दरभंगा जिले का जातीय परिदृश्य हमेशा से चुनावी राजनीति में अहम भूमिका निभाता रहा है। यहां ब्राह्मण और राजपूत मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा प्रभावशाली है। अनुमान है कि जिले की हर विधानसभा सीट पर लगभग 80 हजार राजपूत वोटर हैं। यही वजह है कि एनडीए को मजबूरी में इस वर्ग से उम्मीदवार देने की जरूरत महसूस होती है। गौरा बराम सीट से सुजीत सिंह का नाम लगभग तय माना जा रहा है। ऐसे में अलीनगर सीट पर किसी गैर-राजपूत उम्मीदवार की संभावना कम हो जाती है।
अलीनगर सीट की सबसे बड़ी ताकत ब्राह्मण वोटर हैं, जिनकी संख्या आधी से ज्यादा है। यादव और मुस्लिम वोटर परंपरागत रूप से राजद के साथ रहते हैं। राजद ने इस समीकरण को समझते हुए बिनोद मिश्र को अपना मजबूत ब्राह्मण चेहरा बना दिया है। मिश्र ने 2020 में टिकट न मिलने के बाद लगातार पांच साल ब्राह्मण समाज के बीच काम किया और एनडीए पर यह आरोप लगाया कि जातीय आधार पर उन्हें दरकिनार किया गया। राजद का यह फैसला ब्राह्मण समाज में गौरव का विषय बन गया है।
वहीं दूसरी तरफ, पप्पू सिंह की जातीय पकड़ बेहद कमजोर है। उनकी जाति की आबादी अलीनगर में महज 8 से 10 प्रतिशत है। कुछ पंचायतों और युवाओं में उनकी थोड़ी-बहुत पकड़ जरूर है, लेकिन उनका वोट बैंक 5 से 6 हजार से अधिक नहीं माना जाता। लाखों वोटरों वाले क्षेत्र में यह आधार नगण्य साबित होता है।
स्थिति यह है कि यादव-मुस्लिम मत पहले से ही राजद के पक्ष में एकजुट हैं और अब ब्राह्मण वोटरों का बड़ा हिस्सा भी बिनोद मिश्र के साथ खड़ा दिख रहा है। ऐसे में अगर एनडीए पप्पू सिंह पर दांव लगाता है, तो यह सीधी हार को न्योता देने जैसा होगा। रणनीतिक रूप से एनडीए को दरभंगा में राजपूत और ब्राह्मण दोनों समीकरण साधने होंगे, वरना अलीनगर सीट उनके हाथ से निकलना तय है।

