World News: हिंद महासागर में बसा खूबसूरत मालदीव आज गंभीर संकट से गुजर रहा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है और इस छोटे से द्वीपीय देश का अस्तित्व ही दांव पर लग गया है। मालदीव की लगभग 80 प्रतिशत जमीन समुद्र तल से सिर्फ एक मीटर ऊपर है। ऐसे में थोड़ी-सी बढ़ोतरी भी इसे डुबोने के लिए काफी है।
मालदीव पर मंडरा रहा अस्तित्व का संकट
इसका पहला बड़ा असर 2024 में देखा गया, जब तेज लहरों ने राजधानी माले को जलमग्न कर दिया। मालदीव ही नहीं, बल्कि तुवालु, किरिबाती और मार्शल द्वीप जैसे कई अन्य छोटे द्वीपीय देश भी इसी खतरे से जूझ रहे हैं। किरिबाती ने तो अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए पहले ही फिजी में जमीन खरीद ली है।
कब तक बच पाएगा देश?
मालदीव के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर भूभाग डूब गया तो क्या उसका राष्ट्र के रूप में अस्तित्व खत्म हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक किसी राज्य को मान्यता देने के लिए चार शर्तें जरूरी होती हैं– स्थायी जनसंख्या, निश्चित क्षेत्र, प्रभावी सरकार और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की क्षमता। अगर भूभाग खत्म हो गया तो क्षेत्रीय पहचान मिट जाएगी और सरकार को “स्टेट इन एक्साइल” बनकर चलना पड़ सकता है।
पर्यटन से पलायन तक के भविष्य है डरावनी
मालदीव की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर टिकी है, जहां लगभग 60 प्रतिशत आबादी इसी पर निर्भर है। अगर समुद्र तट गायब हो गए, तो रिसॉर्ट्स बंद हो जाएंगे, लाखों नौकरियां खत्म होंगी और स्थानीय संस्कृति खतरे में पड़ जाएगी। 5.4 लाख की आबादी का पलायन उनकी भाषा और परंपराओं को भी मिटा सकता है।
हालांकि, मालदीव ने इस संकट से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं। हुलहुमाले द्वीप को समुद्र तल से दो मीटर ऊंचा बनाया गया है, जिसमें करीब एक लाख लोग रहते हैं। समुद्री दीवारें बनाई जा रही हैं और “फ्लोटिंग सिटी” जैसी परियोजनाओं पर काम हो रहा है। ग्रीन टूरिज्म और सौर ऊर्जा आधारित रिसॉर्ट्स को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
वैज्ञानिक रिपोर्ट ने बढ़ाई चिंता
वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो 2100 तक मालदीव का 77 प्रतिशत हिस्सा पानी में समा जाएगा। दुनिया भर में करीब 20 करोड़ लोग समुद्र के बढ़ते स्तर से विस्थापित हो सकते हैं। भारत के सुंदरबन जैसे इलाके भी इस खतरे से अछूते नहीं हैं।
मालदीव की यह जंग सिर्फ उसकी नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चेतावनी है कि जलवायु परिवर्तन की अनदेखी आने वाली पीढ़ियों के लिए कितना बड़ा संकट खड़ा कर सकती है।

