Jharkhand News: आदिवासी समुदाय का सेंदरा पर्व पारंपरिक पशु शिकार और प्रकृति से जुड़ी एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में मनाई जाती है। यह पर्व विशेष रूप से मई महीने में मनाया जाता है, जब पुरुष जंगलों में औषधीय पौधे और जड़ी-बूटियाँ इकट्ठा करने के लिए जाते हैं।
सेंदरा पर्व की परंपरा और महत्व
सेंदरा पर्व के दौरान, जब आदिवासी पुरुष शिकार या औषधीय पौधों की खोज में जंगलों में जाते हैं, उनकी पत्नियाँ अपने माथे से सिंदूर पोंछ देती हैं और चूड़ियाँ उतार देती हैं। यह परंपरा उन्हें अस्थायी रूप से विधवा बनाने की प्रतीक है, ताकि वे अपने पति की सुरक्षित वापसी के लिए देवताओं से प्रार्थना कर सकें। यह विश्वास है कि इस धार्मिक अनुष्ठान से पति की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
सेंदरा पर्व के दौरान, आदिवासी समुदाय के लोग पारंपरिक वाद्य यंत्रों जैसे धमसा, चरचरी, झुमर और सकुआ बजाते हुए जंगल की ओर प्रस्थान करते हैं। वे जंगल में रात बिताने के लिए सुरक्षित स्थानों का चयन करते हैं और वहां पूजा-अर्चना करते हैं। इस दौरान, वे जंगली जानवरों का शिकार करते हैं और औषधीय पौधों का संग्रह करते हैं। इस प्रक्रिया में, वे पारंपरिक शिकार कौशल और वनस्पति ज्ञान को आगामी पीढ़ियों तक पहुंचाते हैं।
सेंदरा पर्व का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
सेंदरा पर्व न केवल शिकार से जुड़ा है, बल्कि यह आदिवासी समाज की सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। इस दौरान, समुदाय के लोग एकजुट होकर पारंपरिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं, जिससे आपसी भाईचारे और सहयोग की भावना प्रबल होती है। यह पर्व आदिवासी युवाओं को उनके पारंपरिक कौशल और संस्कृति से अवगत कराता है, जिससे वे अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं।
सेंदरा पर्व 2025 में कब मनाया जाएगा?
वर्ष 2025 में सेंदरा पर्व की तिथि स्थान विशेष पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, झारखंड के सरायकेला क्षेत्र में यह पर्व 14 अप्रैल 2025 को प्रारंभ होगा। इस दौरान, आदिवासी समुदाय के लोग जंगलों में शिकार और औषधीय पौधों की खोज के लिए प्रस्थान करेंगे।
इस प्रकार, सेंदरा पर्व आदिवासी समुदाय की एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो उनके शिकार कौशल, वनस्पति ज्ञान और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने में सहायक है। यह पर्व उनके जीवनशैली और प्रकृति के प्रति सम्मान को दर्शाता है।