आज के डिजिटल युग में बच्चे भी इंटरनेट और सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इसी तकनीकी सुविधा के कारण वे साइबर बुलीइंग जैसी गंभीर समस्या के शिकार बनते जा रहे हैं।
साइबर बुलीइंग क्या है?
साइबर बुलीइंग का मतलब होता है ऑनलाइन माध्यम से किसी बच्चे को मानसिक, भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक रूप से परेशान करना। यह तंग करने की वह प्रक्रिया है, जो पीड़ित के मानसिक संतुलन को भी बिगाड़ सकती है।
हाल ही में हुए एक अध्ययन में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। एक सरकारी इंग्लिश मीडियम स्कूल के 8वीं कक्षा के 174 बच्चों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि 17 प्रतिशत बच्चे साइबर बुलीइंग का शिकार हो चुके हैं। इस सर्वे में शामिल बच्चों की उम्र 11 से 15 साल के बीच थी। इनमें 121 लड़के और शेष लड़कियां थीं। हैरानी की बात यह है कि 70 प्रतिशत बच्चों को इस समस्या की जानकारी थी, जबकि 7 प्रतिशत बच्चों ने स्वीकार किया कि उन्होंने खुद किसी और को ऑनलाइन परेशान किया है।
अध्ययन में यह भी सामने आया कि 15 प्रतिशत बच्चे शारीरिक बुलीइंग के भी शिकार हैं, जिसमें उन्हें मारपीट या धमकियों से डराया गया।
क्या करें अभिभावक?
आज जब बच्चों को स्मार्टफोन और इंटरनेट से दूर करना संभव नहीं है, तो अभिभावकों की भूमिका बहुत अहम हो जाती है। उन्हें बच्चों के व्यवहार पर बारीकी से नजर रखनी चाहिए। जैसे – नींद की कमी, चिड़चिड़ापन, अकेले रहना या रिश्तेदारों से मिलने से कतराना, ये सभी संकेत मानसिक तनाव के हो सकते हैं। शिक्षकों को भी बच्चों के व्यवहार में अचानक आए बदलावों को समझना चाहिए।