Ranchi : राजधानी रांची की सड़कों पर अगर आप निकलें, तो हर तरफ गाड़ियों का सैलाब नजर आता है। इनमें एक बड़ी संख्या ऐसी है, जिनकी नंबर प्लेट या बोनट पर किसी न किसी विभाग या पद का नाम मोटे अक्षरों में लिखा होता है, कहीं “झारखंड सरकार”, कहीं “पुलिस”, कहीं “प्रेस”, तो कहीं “फलाना विभाग” या “अध्यक्ष”। देखने में ये गाड़ियां रुतबे का एहसास कराती हैं, लेकिन हकीकत में यही गाड़ियां रांची की ट्रैफिक व्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी हैं।
यातायात पुलिस की मुश्किलें बढ़ीं
ट्रैफिक पुलिस के लिए इन ‘प्रभावशाली’ गाड़ियों को रोकना आसान नहीं होता। जैसे ही कोई ट्रैफिक जवान ऐसी गाड़ी रोकता है, वहीं से शुरू हो जाता है ड्रामा। चालक तुरंत किसी अधिकारी, नेता या प्रभावशाली व्यक्ति का नाम लेकर दबाव बनाने लगता है। कई बार सड़क पर लंबा जाम लग जाता है क्योंकि बहस के कारण आम जनता फंस जाती है। कई बार तो ट्रैफिक कर्मियों को गाली-गलौज और धमकियों तक का सामना करना पड़ता है।
विभागीय गाड़ियां या सिर्फ दिखावा?
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इन तथाकथित विभागीय गाड़ियों के कागजात अक्सर अधूरे होते हैं। फिटनेस सर्टिफिकेट या बीमा तक नहीं होता। फिर भी “झारखंड सरकार” या “पुलिस” का बोर्ड लगाकर ये वाहन सड़कों पर निर्भीकता से चलते रहते हैं। कई मोटरसाइकिलों पर भी लोग “फलाना विभाग” या “ढिकाना विभाग” लिखवा लेते हैं, जबकि उनका किसी सरकारी विभाग से कोई लेना-देना नहीं होता। सवाल उठता है, क्या सिर्फ एक बोर्ड या स्टिकर लगाकर कोई व्यक्ति सरकारी सुविधा का दुरुपयोग कर सकता है?
‘प्रेस’ लिखी गाड़ियों की बाढ़
रांची की सड़कों पर “प्रेस” लिखी गाड़ियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। रांची प्रेस क्लब के अनुसार, शहर में करीब 1500 पंजीकृत पत्रकार हैं। लेकिन सड़कों पर हजारों “प्रेस” लिखी कारें और बाइकें दौड़ती दिखाई देती हैं। इनमें से अधिकांश लोगों का पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं है। यह दिखावे का नया चलन बन चुका है, बस “प्रेस” का स्टिकर लगाइए और किसी भी चेक पोस्ट या सिग्नल पर रोक से बच जाइए।
पत्रकारों के बीच अब यह सवाल उठने लगा है कि यदि हर कोई खुद को “प्रेस” बताकर नियम तोड़ेगा, तो असली पत्रकारों की साख पर क्या असर पड़ेगा? तंज करते हुए कई लोग कहते हैं-“अब तो गाड़ियों पर ‘प्रेस का बेटा’, ‘प्रेस की पत्नी’ या ‘प्रेस का रिश्तेदार’ भी लिखा जाने लगा, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।”
‘पुलिस’ लिखी निजी गाड़ियां और गलत संदेश
“पुलिस” लिखी कई गाड़ियां भी सड़कों पर देखी जा सकती हैं। इनमें से अधिकांश निजी वाहन होते हैं, जिनका उपयोग पुलिसकर्मियों के रिश्तेदार या परिचित करते हैं। इससे न केवल कानून का उल्लंघन होता है, बल्कि आम जनता में यह संदेश भी जाता है कि पुलिस खुद को नियमों से ऊपर समझती है। यह प्रवृत्ति पुलिस की छवि को नुकसान पहुंचा रही है।
काला टेप और छिपे नंबर
एक और चिंताजनक ट्रेंड यह है कि कई वाहन चालक अपनी नंबर प्लेट पर ब्लैक टेप चिपका देते हैं, ताकि ट्रैफिक कैमरे नंबर न पढ़ सकें। इससे ये लोग सिग्नल तोड़ते हैं, बिना हेलमेट चलते हैं और चालान से बच जाते हैं। कुछ गाड़ियां तो जानबूझकर धुंधले नंबरों के साथ दौड़ती हैं ताकि पहचान मुश्किल हो जाए।
सवाल उठता है, कार्रवाई कब
यह पूरा परिदृश्य एक गंभीर सवाल खड़ा करता है, क्या कानून केवल आम नागरिकों के लिए है? जब आम आदमी बिना हेलमेट पकड़ा जाता है तो तुरंत चालान हो जाता है, लेकिन “सरकार” लिखी गाड़ियों पर पुलिस की नजरें झुक जाती हैं। ट्रैफिक पुलिसकर्मियों का कहना है कि वे इन गाड़ियों पर कार्रवाई करना चाहते हैं, लेकिन दबाव के कारण कदम पीछे खींचने पड़ते हैं।
अब समय आ गया है कि रांची पुलिस और जिला प्रशासन इस दोहरे रवैये पर सख्ती से रोक लगाए। हर वाहन की जांच समान रूप से की जाए, चाहे वह किसी विभाग का हो या किसी आम नागरिक का। क्योंकि जब तक सड़क पर “रुतबा” नियमों से ऊपर रहेगा, रांची की यातायात व्यवस्था अव्यवस्था की शिकार ही बनी रहेगी।

