Mumbai News : भारतीय सिनेमा के संगीत में एक अमिट छाप छोड़ने वाली जोड़ी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, ने 1963 से 1998 तक लगभग 635 फिल्मों के लिए संगीत रचना की। इस दौरान उन्होंने बॉलीवुड के लगभग सभी प्रमुख फिल्म निर्माताओं, निर्देशक एवं गायकों के साथ काम किया। 25 मई को इस जोड़ी के लक्ष्मीकांत की पुण्यतिथि है। इसी दिन 60 वर्ष की आयु में 1998 में वे हमसब को छोड़ कर इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। इस आलेख के द्वारा हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं और उनके संगीत कार्य को आपके बीच पहुंचा रहे हैं, आशा है आपको पसंद आयेगा। लक्ष्मीकांत का पूरा नाम लक्ष्मीकांत शांताराम कुदलकर है। उनका जन्म 3 नवंबर 1937 को मुंबई के विले पार्ले में हुआ। लक्ष्मीकांत के पिता का निधन बचपन में ही हो गया जिसके कारण परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई और उन्हें संगीत को अपना सहारा बनाना पड़ा। उन्होंने सारंगी बजाना सीखा और बाद में वायलिन की शिक्षा ली।
प्यारेलाल से मिलकर संगीत को दी नई दिशा
लक्ष्मीकांत की मुलाकात प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा से हुई, जो खुद एक संगीतकार थे। दोनों की मित्रता गहरी हुई और उन्होंने मिलकर संगीत रचना शुरू की। प्यारेलाल ने भी वायलिन बजाना सीखा था और दोनों की जोड़ी ने संगीत को एक नई दिशा दी। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत और पश्चिमी संगीत का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया। उन्होंने फिल्मों में बड़े पैमाने पर ऑर्केस्ट्रा का उपयोग किया, जैसे कि “सत्यम शिवम सुंदरम” के गीत “चंचल शीतल निर्मल कोमल” में 72 वायलिनिस्टों का प्रयोग किया। उनकी संगीत रचनाओं में सैकड़ों गीत हैं जो आज भी कर्णप्रिय हैं। किसी एक गीत की चर्चा करना असंभव सा लगता है। बस इतना समझिए उन्होंने लगभग चार दशक से ऊपर तक कई पीढियों को अपनी धून पर झूमाया।
पुरस्कार और सम्मान
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें 7 बार का फिल्मफेयर अवार्ड शामिल है। इसके अलावा, उन्हें 32 गोल्ड डिस्क्स भी प्राप्त हुए। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी भारतीय सिनेमा के संगीत इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। 1963 में जब से लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने हिंदी फिल्म संगीत में प्रवेश किया, तब से उन्हें लगभग हर साल सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के लिए नामांकित किया गया। कई साल ऐसे भी रहे जब उन्हें एक ही साल में 3 या उससे अधिक फिल्मों के लिए नामांकित किया गया। वहीं, उनके नाम लगातार चार बार (1977 में अमर अकबर एंथॉनी, 1978 में सत्यम शिवम सुंदरम, 1979 में सरगम एवं 1980 में कर्ज के लिए) फिल्मफेयर अवार्ड प्राप्त करने का रिकॉर्ड है। उनकी रचनाएँ आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेंगी।
मो रफी के साथ रहा अनोखा रिश्ता
शहंशाह-ए-तरन्नुम मो रफी के साथ लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का अनोखा रिश्ता रहा। उन्होंने सबसे ज्यादा गाने मो रफी से ही गवाए। उनके सबसे प्रिय गायक मो रफी ही थे। जब उन्होंने अपना करियर शुरू किया था तो मो रफी ने बिना कोई राशि लिए ही उनके लिए गाना गाया था। बाद में जब लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की आर्थिक हालात सुधरे तो उन्होंने मो रफी को राशि भेंट की लेकिन मो रफी ने यह राशि उन्हें सप्रेम यह कहकर लौटा दी कि इस राशि को तुमलोग रखो और एक-दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ना। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और मो रफी की तिकड़ी ने भारतीय सिनेमा और संगीत को काफी ऊंचाई तक ले गए और एक से बढ़कर एक गाने दिए।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के कुछ प्रसिद्ध गीत
- दर्दे दिल दर्दे जिगर
- आज मौसम बड़ा बेईमान है
- यह रेशमी ज़ुल्फें
- चाहुंगा मैं तुझे सांझ सवेरे
- कोई जब राह ना पाए
- मेरे मेहबूब कयामत होगी
- मैं शायर तो नहीं
- मन क्यूँ बहका रे बहका आधी रात को
- आते जाते खूबसूरत
- चिट्ठी आई है
- मार गयी मुझे तेरी जुदाई
- जिन्दगी की यही रीत है
- तेरे मेरे बीच में
- गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर
- तू ना जा मेरे बादशाह
- करते हैं हम प्यार मिस्टर इंडिया से

