India News: भारत का सर्वोच्च न्यायालय देश के न्याय और लोकतंत्र का सबसे अहम स्तंभ माना जाता है, लेकिन यहां महिलाओं की मौजूदगी बेहद कम है। 1950 से 1989 तक तो एक भी महिला जज सुप्रीम कोर्ट का हिस्सा नहीं बनीं। पहली महिला न्यायमूर्ति फातिमा बीबी की नियुक्ति 1989 में हुई थी। उसके बाद से अब तक कुल 11 महिलाएं ही सुप्रीम कोर्ट में जज बन पाई हैं। यह संख्या आज तक की कुल नियुक्तियों का महज 4 फीसदी है।
अमेरिकी उदाहरण और भारत की हकीकत
अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट की दिवंगत जस्टिस रूथ बेडर गिन्सबर्ग से एक बार पूछा गया था कि महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व कब होगा? उन्होंने जवाब दिया था, “जब सभी नौ सीटों पर महिलाएं होंगी।” उनकी बात सुनकर लोग भले हैरान हुए हों, लेकिन उन्होंने यह सवाल भी खड़ा किया कि जब सभी सीटें पुरुषों के पास थीं तो किसी को आपत्ति क्यों नहीं थी। भारत के संदर्भ में भी यही सवाल उठता है।
आने वाली पहली महिला सीजेआई
भारत के इतिहास में पहली बार 2027 में एक महिला भारत की मुख्य न्यायाधीश बनने जा रही हैं। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना 36 दिनों के लिए सीजेआई बनेंगी। हालांकि, सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ एक महिला सीजेआई बनने से न्यायपालिका में लैंगिक समानता की तस्वीर बदल जाएगी?
वरिष्ठता बनाम समानता का सवाल
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम से होती है। इसमें वरिष्ठता को अहम माना जाता है, लेकिन कई बार देखा गया है कि महिला जजों की वरिष्ठता को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। हाल ही में न्यायमूर्ति पंचोली की पदोन्नति का मामला इसका उदाहरण रहा।
हाईकोर्ट की स्थिति
देश की हाईकोर्ट्स में सिर्फ 14 फीसदी महिला जज हैं। कई हाईकोर्ट तो ऐसे हैं जहां एक भी महिला न्यायाधीश नहीं है। इसका कारण ऐतिहासिक भेदभाव, कार्यस्थल पर असुरक्षित माहौल और तरक्की के अवसरों की कमी मानी जाती है।
बार से नियुक्ति का अभाव
सुप्रीम कोर्ट में अब तक सिर्फ 10 वकीलों को सीधे जज बनाया गया है। इनमें से केवल एक महिला रही है। यह स्थिति तब है जब बार और निचली अदालतों में महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है।
कॉलेजियम की प्रक्रिया पर सवाल
कॉलेजियम दावा करता है कि वह वरिष्ठता के अलावा काबिलियत, ईमानदारी और विविधता को भी महत्व देता है। लेकिन व्यवहार में देखा जाए तो महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व बेहद कम है। 2021 के बाद से सुप्रीम कोर्ट में एक भी महिला जज की नियुक्ति नहीं हुई। पूर्व सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ के कार्यकाल में 17 जजों की नियुक्ति हुई, लेकिन उनमें कोई महिला नहीं थीं।
बदलाव की जरूरत
न्यायपालिका खुद संसद और अन्य संस्थानों में महिलाओं के लिए आरक्षण और प्रतिनिधित्व की वकालत करती रही है। लेकिन जब बात खुद की आती है तो आंकड़े बहुत पीछे रह जाते हैं। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं।

