World News: मध्य-पूर्व के देश कुवैत ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की तरह ही कुवैतीकरण की नीति अपनाई है, जिसका उद्देश्य सरकारी और निजी क्षेत्रों में अपने नागरिकों को अधिक से अधिक रोजगार देना है। इस नीति के तहत, कुवैत में काम कर रहे विदेशी नागरिकों, जिसमें भारतीय भी शामिल हैं, को नौकरी मिलना और बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। कुवैत के न्याय मंत्री, नासिर अल-सुमैत ने घोषणा की है कि 2030 तक देश की न्यायपालिका 100 प्रतिशत कुवैती हो जाएगी। इसका मतलब है कि सभी न्यायिक पदों से विदेशियों को हटा दिया जाएगा और उनकी जगह कुवैती नागरिकों को नियुक्त किया जाएगा।
यह पहल केवल न्यायपालिका तक सीमित नहीं है। कुवैत सरकार तेल, तकनीकी और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी अपने नागरिकों को प्राथमिकता दे रही है। कुवैत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (केपीसी) जैसी कंपनियों ने 2024 तक शीर्ष पदों पर 100 प्रतिशत कुवैती स्टाफिंग का लक्ष्य हासिल कर लिया है। कुवैत में अब विदेशियों के लिए नौकरी पाना और भी कठिन हो गया है। चिकित्सा, इंजीनियरिंग, कानून, शिक्षा और वित्त जैसे क्षेत्रों में काम करने के लिए अब विदेशी उम्मीदवारों को ऑनलाइन पेशेवर दक्षता परीक्षा और गहन शैक्षणिक सत्यापन से गुजरना पड़ता है।
भारतीयों पर प्रभाव
बड़ी भारतीय आबादी: कुवैत में एक बड़ी संख्या में भारतीय आबादी रहती है। 2024 के अंत तक, कुवैत में करीब 10.7 लाख भारतीय थे, जो देश की कुल जनसंख्या का लगभग 20 प्रतिशत है। इसमें से करीब 884,000 भारतीय कार्यरत हैं। कुवैतीकरण की इस नीति से कुशल और गैर-कुशल, दोनों तरह के भारतीयों को नौकरी पाने में कठिनाई होगी। चूंकि कुवैत की अर्थव्यवस्था में भारतीयों की एक बड़ी हिस्सेदारी है, इसलिए इस नीति का सबसे बड़ा प्रभाव भारत पर ही होने की संभावना है। कुल मिलाकर, कुवैत की यह नई नीति स्थानीय नागरिकों को सशक्त बनाने पर केंद्रित है, लेकिन इससे वहाँ काम करने वाले विदेशी, खासकर भारतीय श्रमिकों के लिए चुनौतियाँ बढ़ रही हैं।

