Public Adda News: शिक्षा किसी भी समाज के विकास की बुनियाद है, लेकिन दुनिया के कई संघर्ष क्षेत्रों में जंग बच्चों और युवाओं को किताबों से दूर कर रही है। गरीबी, आतंकवाद और अस्थिरता ने शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह चरमार दिया है। विश्व साक्षरता दिवस के मौके पर उन पांच देशों पर, जहां संघर्ष ने साक्षरता को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई है।
गरीबी, आतंकवाद और अस्थिरता ने इन देशों में बच्चों और युवाओं को किताबों से दूर कर दिया
अफ्रीकी देश चाड की साक्षरता दर दुनिया में सबसे कम, करीब 27 प्रतिशत है। यहां 15 वर्ष से ऊपर की केवल 13–15 प्रतिशत महिलाएं और 48 प्रतिशत पुरुष ही पढ़-लिख पाते हैं। गरीबी, रूढ़िवाद और हिंसा की वजह से लाखों बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। बोको हराम और आईएसडब्ल्यूएपी जैसे आतंकी गुटों ने हालात और बिगाड़ दिए हैं। हाल ही में सुडान युद्ध से चार लाख शरणार्थियों का आना शिक्षा संसाधनों पर भारी दबाव डाल रहा है।
वहीं माली की साक्षरता दर 31 प्रतिशत है। ग्रामीण इलाकों में हालत और खराब हैं। करीब 20 लाख बच्चे स्कूल से बाहर हैं। जिहादी संगठन जेएनआईएम और तुआरेग विद्रोही लगातार हमले कर रहे हैं। 2025 में अब तक 400 से ज्यादा मौतें और लाखों का विस्थापन हो चुका है। यहां महिलाओं की शिक्षा सबसे अधिक प्रभावित है।
बुर्किना फासो, पश्चिम अफ्रीका का यह देश भी आतंक और असुरक्षा से जूझ रहा है। साक्षरता दर करीब 38 प्रतिशत है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह 25 प्रतिशत से भी नीचे है। हिंसा के चलते अब तक 60 लाख लोग मानवीय सहायता पर निर्भर हैं और छह हजार से ज्यादा स्कूल बंद हो चुके हैं। आठ लाख से अधिक छात्र पढ़ाई से वंचित हैं।
साउथ सूडान में साक्षरता दर 32 प्रतिशत के आसपास है। जातीय संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता ने शिक्षा प्रणाली को करीब नष्ट कर दिया है। करीब 28 लाख बच्चे स्कूल से बाहर हैं। चुनाव टलने से अस्थिरता और बढ़ी है। दो हजार से ज्यादा स्कूल बंद और लाखों बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं।
तालिबान शासन में लड़कियों की शिक्षा पर सबसे बड़ा प्रतिबंध लगा है। देश की औसत साक्षरता दर 37 प्रतिशत है, लेकिन महिलाओं में यह महज 24 प्रतिशत है। 14 लाख लड़कियां शिक्षा से वंचित हैं। आईएसके के हमले और तालिबान के कठोर नियम हालात और बिगाड़ रहे हैं।

