India News: अंतरिक्ष मिशनों में सबसे अहम चीज़ों में से एक है—सही और शक्तिशाली ईंधन। रॉकेट या अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बाहर निकालने और उसे दिशा देने के लिए जबरदस्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस ऊर्जा का मुख्य स्रोत होता है—तरल हाइड्रोजन (LH2) और तरल ऑक्सीजन (LOX) का संयोजन।
जब एलएच-2 और एलओएक्स को मिलाकर जलाया जाता है, तो यह इतना अधिक ऊर्जा उत्पन्न करता है कि रॉकेट पृथ्वी छोड़कर अंतरिक्ष की ओर उड़ सकता है। दिलचस्प बात यह है कि इस प्रक्रिया के बाद केवल पानी उत्पन्न होता है, जिससे यह पर्यावरण के लिए भी पूरी तरह सुरक्षित माना जाता है।
इन ईंधनों का उपयोग केवल लॉन्चिंग में ही नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में यान की दिशा बदलने, गति नियंत्रण और सही कक्षा में स्थापित करने के लिए भी किया जाता है। एलएच-2 को -253°C पर संग्रहित किया जाता है, जिसके लिए विशेष इन्सुलेशन और कूलिंग सिस्टम की जरूरत होती है।
अंतरिक्ष यान में अन्य ईंधन भी प्रयोग किए जाते हैं, जैसे—
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ठोस प्रणोदक (Solid Propellants): ये पाउडर जैसे होते हैं और एक बार जलने पर बेहद तेज़ बल उत्पन्न करते हैं। रक्षा मिसाइलों और सैटेलाइट लॉन्चर में ये अधिक इस्तेमाल होते हैं।
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अन्य तरल ईंधन: जैसे कि केरोसिन (RP-1), हाइड्राज़ीन और अल्कोहल, जो कुछ विशेष प्रणालियों में उपयोग किए जाते हैं।
इसके अतिरिक्त, ईंधन सेल का प्रयोग अंतरिक्ष यान की बिजली जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता है, जिसमें हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की रासायनिक प्रतिक्रिया से बिजली उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा नेविगेशन, संचार और अन्य प्रणालियों को सक्रिय रखने में मदद करती है।
इसलिए, अंतरिक्ष मिशनों की सफलता के पीछे सही ईंधन का चुनाव और उसका वैज्ञानिक तरीके से इस्तेमाल एक निर्णायक भूमिका निभाता है।