World News: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में H-1B वीजा की फीस लगभग 1,000 डॉलर से बढ़ाकर 1 लाख डॉलर कर दी है। यह कदम अमेरिका में भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है और टेक कंपनियों में हलचल मचा दी है। लेकिन जानकारों का कहना है कि यह आदेश ज्यादा समय तक टिक नहीं पाएगा और ‘फुस्सी बम’ साबित होगा।
H-1B वीजा विशेषज्ञों के मुताबिक, इस फैसले का सबसे बड़ा असर भारतीयों पर पड़ेगा क्योंकि अमेरिका में सबसे ज्यादा H-1B वीजा धारक भारतीय हैं। कानूनी जानकारों का कहना है कि ट्रंप का यह आदेश इमीग्रेशन एंड नेशनैलिटी एक्ट की धारा 212(एफ) पर आधारित है, जो गैर-नागरिकों के प्रवेश को नियंत्रित करने का अधिकार देती है। हालांकि, इस धारा का इस्तेमाल पहले भी किया गया था, लेकिन सीधे आर्थिक शर्त लगाने के लिए नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ट्रंप बनाम हवाई मामले में यात्रा प्रतिबंध को मंजूरी दी थी, लेकिन वह केवल प्रवेश पर रोक थी, टैक्स जैसी नई फीस लगाने की नहीं। विशेषज्ञों का मानना है कि 1 लाख डॉलर की फीस ‘कर’ जैसी है, जिसे लागू करने का अधिकार केवल अमेरिकी कांग्रेस के पास है। इसलिए, राष्ट्रपति का नया आदेश उस संरचना को दरकिनार करता है, जो संवैधानिक रूप से गलत माना जा सकता है।
कानूनी विशेषज्ञों और इमिग्रेशन वकीलों का कहना है कि इस आदेश को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। लंबे समय से अमेरिका में रह रहे भारतीय H-1B धारकों के पास इसे चुनौती देने का मजबूत आधार है। इमिग्रेशन अटॉर्नी अश्विन शर्मा ने इसे ‘कांग्रेस की मंजूरी के बिना राष्ट्रपति का टैक्स लगाना’ बताया और कहा कि जल्द ही इसके खिलाफ मुकदमे दायर होंगे।
जानकार यह भी बताते हैं कि पुराने बैन में अमेरिका में पहले से मौजूद लोगों को छूट दी गई थी, लेकिन नए आदेश में ऐसी कोई छूट नहीं है। इसका मतलब है कि अमेरिका में पहले से काम कर रहे भारतीय प्रोफेशनल्स भी इस नए आदेश से प्रभावित हो सकते हैं।
इस फैसले ने अमेरिकी टेक कंपनियों में भी चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि भारतीय इंजीनियर्स और प्रोफेशनल्स का बड़ा हिस्सा H-1B वीजा पर काम करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अदालत ने इसे चुनौती के बाद रोक दिया, तो यह कदम लंबे समय तक प्रभावी नहीं रहेगा।

