World News: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा पर आवेदन शुल्क को बढ़ाकर 1 लाख डॉलर यानी करीब 88 लाख रुपए कर दिया है। इस फैसले को लेकर भारत समेत दुनिया भर में कई सवाल उठ रहे हैं। व्हाइट हाउस ने अब एक पत्र जारी कर इस निर्णय का बचाव किया और कहा कि इसका मकसद वीजा प्रोग्राम के दुरुपयोग को रोकना, अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता को ध्यान में रखना है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन का कहना है कि कई कंपनियां अमेरिकी कर्मचारियों की जगह कम सैलरी पर विदेशी पेशेवरों को नौकरी दे रही हैं। इसके चलते अमेरिका में युवा बेरोजगार हो रहे हैं। नए शुल्क का उद्देश्य सिर्फ हाई-स्किल्ड और उच्च वेतन वाले कर्मचारियों को वरीयता देना है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कंपनियों ने H-1B वीजा का इस्तेमाल अमेरिकी कर्मचारियों को निकालकर सस्ते विदेशी श्रमिकों को लाने के लिए किया। उदाहरण के लिए, एक कंपनी ने 5,189 H-1B वीजा मंजूर करवाकर 16,000 अमेरिकियों को नौकरी से निकाला। इसी तरह, ओरेगन में एक कंपनी ने 2,400 नौकरियां खत्म की और 1,698 H-1B वीजा हासिल किए।
तकनीकी जानकारों के मुताबिक, 2003 में आईटी क्षेत्र की 32 फीसदी नौकरियां H-1B धारकों के पास थीं, जो 2025 तक 65 फीसदी से अधिक हो जाएगी। कंप्यूटर साइंस ग्रेजुएट्स की बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी और कंप्यूटर इंजीनियरिंग में 7.5 फीसदी है, जो अन्य क्षेत्रों की तुलना में दोगुनी है। H-1B प्रोग्राम अमेरिकी युवाओं को टेक सेक्टर में आने से हतोत्साहित कर रहा है।
व्हाइट हाउस ने कहा कि ट्रंप का यह फैसला ‘अमेरिका-फर्स्ट’ नीति के तहत लिया गया है। अमेरिकी श्रमिकों के लिए जॉब ट्रेनिंग संसाधन आरक्षित रहेंगे और विदेशी श्रमिकों पर निर्भरता कम होगी। प्रशासन का दावा है कि नए नियम लागू होने के बाद नई नौकरियों का लाभ अमेरिकी नागरिकों को मिलेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले का सबसे बड़ा असर भारतीय आईटी पेशेवरों पर होगा, क्योंकि H-1B वीजा धारकों में सबसे बड़ी हिस्सेदारी भारतीयों की है।

