World News: दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मौत से जुड़ी परंपराएं और रस्में अलग-अलग होती हैं, लेकिन पश्चिम अफ्रीका के देश घाना में मौत का मतलब शोक नहीं, बल्कि एक उत्सव होता है। यहां के गा समुदाय की परंपराएं दुनिया भर में अपनी विशिष्टता के लिए जानी जाती हैं, जहां अंतिम संस्कार एक पार्टी की तरह मनाया जाता है और मृतक को ‘फैंटेसी कॉफिन्स’ यानी खास डिज़ाइन किए गए ताबूतों में दफनाया जाता है।
कैसे शुरू हुई यह परंपरा?
यह परंपरा 1950 के दशक में शुरू हुई, जब एक स्थानीय कारीगर सेथ काने कोई (Seth Kane Kwei) ने गा समुदाय के राजा के लिए एक भव्य पालकी बनाई। राजा की मृत्यु के बाद, उन्हें उसी पालकी के आकार के ताबूत में दफनाया गया। इस घटना ने एक नई और अनोखी परंपरा की नींव रखी, जो आज घाना की सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है।
क्या होते हैं फैंटेसी ताबूत?
‘फैंटेसी कॉफिन्स’ साधारण ताबूत नहीं होते, बल्कि मृत व्यक्ति के जीवन, पेशे या पसंद को दर्शाने वाले ताबूत होते हैं। इन ताबूतों को लकड़ी से बेहद खूबसूरती से रंग-बिरंगे आकार में तराशा जाता है। उदाहरण के लिए:
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मछुआरे के लिए मछली के आकार का ताबूत
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किसान के लिए मक्का के भुट्टे जैसा ताबूत
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टीचर के लिए किताब के आकार का ताबूत
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कारोबारी के लिए डॉलर या कार का मॉडल
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मोबाइल फोन, बीयर की बोतल, हवाई जहाज या पेन जैसे डिजाइन भी बनाए जाते हैं
अंतिम संस्कार या अलविदा पार्टी?
यहां अंतिम विदाई को ‘अलविदा पार्टी’ की तरह मनाया जाता है। इस अवसर पर पूरा गांव एकजुट होता है। बैंड-बाजा, नाच-गाना, और पारंपरिक संगीत की धुनों के साथ मृतक को विदाई दी जाती है। लोग काले या सफेद कपड़ों की जगह रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर समारोह में शामिल होते हैं। यह माहौल ग़मगीन नहीं बल्कि उत्साह और सम्मान से भरा होता है।
सांस्कृतिक पहचान और आस्था
घाना के लोग मानते हैं कि इंसान की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा नए जीवन की ओर जाती है। इसलिए मृतक को सम्मानपूर्वक और उल्लासपूर्वक विदा करना जरूरी होता है। यह परंपरा मृतक की उपलब्धियों और उसके जीवन की खुशियों को सेलिब्रेट करने का जरिया बन गई है। यहां के लोगों के लिए यह ताबूत अंतिम विदाई का तरीका नहीं, बल्कि मृतक की जिंदगी का प्रतीक होते हैं।
पीएम मोदी की यात्रा से फिर सुर्खियों में
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घाना यात्रा के दौरान यह अनोखी परंपरा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर चर्चा में आ गई। मोदी ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान के तहत गा समुदाय की इस विरासत को भारतीय संस्कृति से जोड़ते हुए सराहा। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में विविधता ही मानवता की असली पहचान है।
आधुनिक कलाकारों को भी मिला प्लेटफॉर्म
घाना की इस परंपरा ने अब वैश्विक स्तर पर पहचान बना ली है। कई आर्ट गैलरीज़ और म्यूज़ियम्स में इन फैंटेसी ताबूतों की प्रदर्शनी लगाई जाती है। कई कलाकार और डिज़ाइनर इन ताबूतों को कला के रूप में पेश कर रहे हैं, जिससे यह न केवल सांस्कृतिक बल्कि आर्थिक रूप से भी समुदाय को लाभ पहुंचा रहा है।