World News: जलवायु परिवर्तन की वजह से यूरोप में गर्मी अब मौत का पर्याय बनती जा रही है। बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ (आईएसग्लोबल) की एक ताज़ा रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि 2024 की गर्मियों में 62,700 से ज्यादा लोगों की जान सिर्फ गर्मी से चली गई। इनमें सबसे ज्यादा प्रभावित बुजुर्ग और महिलाएं रहीं।
तीन साल में 1.8 लाख मौतें
इस रिपोर्ट में 32 यूरोपीय देशों के रोज़ाना मौतों का डेटा इकट्ठा किया गया। नतीजे चौंकाने वाले रहे। 2022 से 2024 के बीच लगातार तीन गर्मियों में कुल 1,81,000 मौतें गर्मी से जुड़ी वजहों से हुईं। यह आंकड़ा बताता है कि किस तरह बढ़ता तापमान यूरोप की सेहत पर कहर ढा रहा है।
दक्षिणी यूरोप पर सबसे ज्यादा असर
रिपोर्ट कहती है कि कुल मौतों में से दो-तिहाई दक्षिणी यूरोप में हुईं, खासकर इटली में, जहां बुजुर्ग आबादी अधिक है। 2024 की गर्मियों में मौतों की दर 2023 के मुकाबले 23 फीसदी ज्यादा रही। हालांकि यह आंकड़ा 2022 से थोड़ा कम रहा, जब 67,900 मौतें दर्ज की गई थीं।
हीटवेव की चेतावनी और चुनौतियां
स्टडी के लेखक टोमास जानोस ने बताया कि कुछ जगहों पर 24 डिग्री सेल्सियस जैसे “सामान्य” तापमान पर भी कमजोर लोगों की जान पर खतरा देखा गया। यूरोपीय एनवायरनमेंट एजेंसी के अधिकारी जेरार्डो सांचेज़ ने चेताया कि गर्मी से बचाव को दवा की तरह जरूरी समझना होगा। इसके लिए इमारतों को बेहतर बनाने, कूलिंग सिस्टम सबके लिए उपलब्ध कराने और लंबे समय की निवेश योजनाओं की आवश्यकता है।
2025 में भी बढ़ सकता है खतरा
हालांकि रिपोर्ट में 2025 शामिल नहीं है, लेकिन इटली की इमरजेंसी मेडिसिन सोसाइटी का कहना है कि इस साल भी अस्पतालों पर चरम गर्मी के दौरान मरीजों का दबाव 20 फीसदी तक बढ़ गया। संगठन के अध्यक्ष एलेसांद्रो रिकार्डी ने कहा कि कमजोर और पहले से बीमार लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं, जिससे हालात फ्लू के मौसम जैसे हो गए।
वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने साफ चेतावनी दी है कि अगर जलवायु परिवर्तन पर काबू नहीं पाया गया, तो आने वाले सालों में यूरोप में हीटवेव और ज्यादा घातक साबित हो सकती है।

