World News: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर विवादों में हैं, लेकिन इस बार वजह सिर्फ उनकी राजनीतिक नीति नहीं, बल्कि उनके परिवार की कथित व्यावसायिक गतिविधियां हैं, जो भारत विरोधी मानी जा रही हैं। जानकारों की मानें तो ट्रंप अब अमेरिकी हितों से ज्यादा अपने रिश्तेदारों और निजी व्यापारिक फायदे के लिए फैसले ले रहे हैं।
इस पूरे विवाद की शुरुआत तब हुई जब यह सामने आया कि ट्रंप के बेटे डोनाल्ड ट्रंप जूनियर के करीबी मित्र और शिकारी साथी जेंट्री बीच ने पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्किये का दौरा किया। यह दौरा जनवरी 2025 में हुआ, जब ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बने और शपथ लेने के महज 10 दिन बाद बीच ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके मंत्रियों से मुलाकात की।
विशेष बात यह है कि जेंट्री बीच न सिर्फ ट्रंप जूनियर के कॉलेज के साथी हैं, बल्कि वह वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल नामक क्रिप्टोकरेंसी प्रोजेक्ट के भी भागीदार हैं, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप जूनियर, एरिक ट्रंप और जेरेड कुश्नर (ट्रंप के दामाद) की भी हिस्सेदारी है। इस परियोजना के तहत पाकिस्तान को दक्षिण एशिया की “क्रिप्टो राजधानी” बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए ‘पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल’ का गठन किया गया है, जिसमें बाइनेंस के संस्थापक चांगपेंग झाओ को सलाहकार नियुक्त किया गया है।
इस घटनाक्रम ने भारत में चिंता बढ़ा दी है, खासतौर पर ऑपरेशन सिंदूर के बाद, जिसमें भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकी शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी। उस वक्त ट्रंप प्रशासन का तटस्थ रवैया भारत को अखर गया था। अब जब ट्रंप परिवार के करीबी व्यापारिक साझेदार पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्किये में सौदे कर रहे हैं, तो सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या अमेरिकी विदेश नीति अब व्यक्तिगत फायदे के लिए बदली जा रही है?
गौरतलब है कि जेंट्री बीच की लॉबिंग की भूमिका पहले भी विवादों में रही है। 2018 में उन्होंने व्हाइट हाउस में प्रवेश कर वेनेज़ुएला पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों को कम करने की लॉबिंग की थी, ताकि अमेरिकी कंपनियां वहां व्यापार कर सकें। अब यही मॉडल दक्षिण एशिया में दोहराया जा रहा है — लेकिन इसकी राजनीतिक कीमत भारत को चुकानी पड़ सकती है।
भारत ने ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश को पहले ही खारिज कर दिया है और साफ कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर एक द्विपक्षीय मामला है। भारत के नीति-निर्माताओं को अब इस बात की चिंता है कि ट्रंप प्रशासन के निर्णयों पर कहीं व्यापारिक गठजोड़ों का ज्यादा असर तो नहीं हो रहा?

