Tourist News: तेलंगाना राज्य में हैदराबाद से लगभग 117 किलोमीटर दूर स्थित देवरकोंडा किला उन छिपे रत्नों में से एक है जो इतिहास, प्रकृति और साहसिक यात्रा का सुंदर मेल प्रस्तुत करता है। 13वीं–14वीं शताब्दी में पद्म नायक वेलमा राजवंश द्वारा निर्मित यह किला कभी दक्षिण भारत की रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रक्षा दुर्ग था।
स्थापत्य और प्राकृतिक सौंदर्य
किला सात पहाड़ियों के बीच स्थित है, जो इसे एक प्राकृतिक दुर्ग का रूप देते हैं। ऊंची दीवारें, चौड़ी परकोटे, बुर्ज और प्रहरी टावर इसके सैन्य गौरव के प्रतीक हैं। हालांकि अब किले के कई हिस्से खंडहर में बदल चुके हैं, लेकिन इसके पत्थर आज भी इसके गौरवमय अतीत की गवाही देते हैं।
किले तक पहुंचने का रास्ता चट्टानी और घुमावदार है, जो ट्रेकिंग और एडवेंचर पसंद लोगों के लिए रोमांच से भरा अनुभव बन जाता है। रास्ते में मिलने वाले देवरकोंडा कस्बे के ग्रामीण नज़ारे इस यात्रा को और यादगार बनाते हैं।
किले के धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल
किले परिसर में भगवान राम और भगवान शिव को समर्पित दो प्राचीन मंदिर हैं, जो इस स्थान की धार्मिक महत्ता को दर्शाते हैं। किले के अंदर स्थित एक बड़ा तालाब है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह कभी सूखता नहीं। साथ ही, यहां से सीढ़ियां नीचे जाती हैं जो कृष्णा नदी के बैकवाटर में स्थित पाताल गंगा तक पहुंचती हैं।
स्थानीय मान्यता के अनुसार, पाताल गंगा का जल उपचारात्मक गुणों से युक्त है, और श्रद्धालु यहां स्नान करने आते हैं।
शांति और एकांत का अनुभव
हैदराबाद के अन्य लोकप्रिय किलों जैसे गोलकुंडा या वारंगल की तुलना में यहां पर्यटकों की भीड़ नहीं होती। यह स्थान उन लोगों के लिए आदर्श है जो प्रकृति की शांति और इतिहास की गहराई दोनों का आनंद लेना चाहते हैं।
किला अब तेलंगाना सरकार के पर्यटन संवर्धन कार्यक्रम का हिस्सा है, जिससे इसे जल्द ही राज्य के प्रमुख हेरिटेज ट्रेल्स में शामिल किया जाएगा।

