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Home»#Trending»सात दशक का अन्याय, क्या अब मिलेगा संवैधानिक न्याय? राज्यपाल को सौंपा मांग पत्र
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सात दशक का अन्याय, क्या अब मिलेगा संवैधानिक न्याय? राज्यपाल को सौंपा मांग पत्र

Muzaffar HussainBy Muzaffar HussainAugust 14, 2025Updated:August 14, 2025No Comments2 Mins Read
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Ranchi News : जमिअतुल मोमेनिन चौरासी झारखंड ने झारखंड प्रदेश के राज्यपाल को एक मांग पत्र सौंपते हुए 10 अगस्त 1950 के प्रेसीडेंसियल ऑर्डर को निरस्त करने की मांग की है। संगठन का कहना है कि यह आदेश मुस्लिम और ईसाई दलितों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव करता है और संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत दिए गए अवसरों से उन्हें वंचित रखता है।

जमिअतुल मोमेनिन ने राज्यपाल से आग्रह किया है कि इस मामले को राष्ट्रपति तक पहुंचाया जाए, ताकि लंबे समय से चल रहे इस कानूनी अन्याय को समाप्त किया जा सके। संगठन का कहना है कि अनुच्छेद 14, 15, 16 और 25 साफ तौर पर धर्म, मूल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को निषिद्ध करते हैं, लेकिन अनुच्छेद 341 पर लगा धार्मिक प्रतिबंध इन संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।

मांग पत्र में कहा गया है कि ईसाई और मुस्लिम दलितों को 10 अगस्त 1950 से लगातार अवसरों और लाभों से वंचित रखा जा रहा है, जिससे उन्हें न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक रूप से भी पिछड़ना पड़ा है। संगठन ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि इस अन्याय को न केवल समाप्त किया जाए, बल्कि इन समुदायों को मुख्यधारा में लाने के लिए विशेष प्रावधान भी किए जाएं।

जमिअतुल मोमेनिन का कहना है कि इस आदेश ने सात दशकों से संवैधानिक समानता के सिद्धांत को कमजोर किया है। इसके कारण इन समुदायों के बीच शासन और प्रशासन के प्रति अविश्वास भी पनपा है, जिसे खत्म करने के लिए सकारात्मक कदम उठाना जरूरी है।

मांग पत्र पर संगठन के प्रवक्ता सह मीडिया प्रभारी शकील अंसारी ने हस्ताक्षर किए। उन्होंने कहा कि इस आदेश को समाप्त कर संविधान की मूल भावना की रक्षा करना और सभी नागरिकों को समान अवसर देना ही वास्तविक लोकतंत्र का प्रतीक है।

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