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India News: बांग्लादेश में मचे कोहराम और वहां अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं पर हो रहे हमलों ने भारत के सीमावर्ती राज्यों—पश्चिम बंगाल और असम की राजनीति में हलचल मचा दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश की यह उथल-पुथल केवल एक पड़ोसी देश का आंतरिक मामला नहीं रह गई है, बल्कि इसने भारत के चुनावी और सामाजिक समीकरणों को सीधे तौर पर प्रभावित करना शुरू कर दिया है। सवाल अब यह उठने लगा है कि क्या आगामी विधानसभा चुनावों में ‘बांग्लादेश फैक्टर’ निर्णायक भूमिका निभाएगा?
घुसपैठ और जनसांख्यिकी: असम और बंगाल में ध्रुवीकरण की नई लहर
असम और पश्चिम बंगाल की लंबी सीमा बांग्लादेश से जुड़ी है। वर्षों से इन राज्यों में अवैध घुसपैठ और जनसांख्यिकीय बदलाव (Demographic Change) एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। बांग्लादेश में कट्टरपंथी समूहों के उभार ने इन मुद्दों को फिर से केंद्र में ला खड़ा किया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने घुसपैठियों के खिलाफ अभियान को और तेज करने के संकेत दिए हैं। वहीं, पश्चिम बंगाल में भाजपा इसे “हिंदुओं के अस्तित्व के संकट” के रूप में पेश कर रही है। “आज का बांग्लादेश, कल का बंगाल” जैसे नारे चुनावी गलियारों में गूंजने लगे हैं, जिससे ममता बनर्जी सरकार के सामने कानून-व्यवस्था और संतुलन बनाने की बड़ी चुनौती पैदा हो गई है।
CAA और NRC की बहस को मिली नई धार; शरणार्थी समूहों में सुगबुगाहट
बांग्लादेशी हिंदुओं पर अत्याचार की खबरों ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और एनआरसी (NRC) की बहस को एक बार फिर गरमा दिया है। सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले शरणार्थी समूहों के बीच सीएए के प्रति समर्थन और उम्मीदें बढ़ी हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह स्थिति अल्पकालिक चुनावी लाभ के लिए ध्रुवीकरण तो पैदा कर सकती है, लेकिन दीर्घकाल में इसके सामाजिक परिणाम गंभीर हो सकते हैं। सीमावर्ती इलाकों में विकास, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं जैसे जरूरी सवाल इस भावनात्मक बहस के पीछे छूटते नजर आ रहे हैं।
शेख हसीना का तख्तापलट और कट्टरपंथ का खतरा
बता दें कि साल 2024 में बांग्लादेश में हुए हिंसक आंदोलन के बाद शेख हसीना को सत्ता छोड़कर भारत आना पड़ा। इसके बाद वहां कट्टरपंथी समूहों का प्रभाव बढ़ा और हिंदू समुदाय के खिलाफ हिंसा की खबरें आईं। इंकलाब मंच के नेता शरीफ उस्मान हादी की मौत और एक हिंदू युवक की नृशंस हत्या ने भारत में भी गुस्से की लहर पैदा कर दी है। दिल्ली से कोलकाता तक बांग्लादेशी दूतावासों के बाहर हो रहे विरोध-प्रदर्शन इस बात का प्रमाण हैं कि सीमा पार की चिंगारी अब भारतीय राजनीति के ताने-बाने को सुलगाने लगी है।

