Public Adda: हाल ही में किए गए एक शोध से खुलासा हुआ है कि लोगों की क्रिएटिव सोच पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का विपरीत असर पड़ रहा है। शोध बताता है कि जब लोग AI पर बहुत ज्यादा भरोसा करने लगते हैं, तो उनकी सोच, समस्या सुलझाने और विश्लेषण करने से हटकर AI के उत्तर की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने तक ही सीमित हो जाती है। यह बदलाव व्यक्ति के निर्णय लेने और समालोचनात्मक सोचने की क्षमताओं को कमजोर कर सकता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है।
इसके विपरीत रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने हमारी जिंदगी को कई मायनों में आसान बना दिया है। चेटजीपीटी और गूगल जेमिनी जैसे टूल्स ने न केवल कामकाज की रफ्तार बढ़ाई है बल्कि हर सेक्टर में AI की मांग को भी आसमान पर पहुंचा दिया है। कोडिंग से लेकर इनोवेटिव लर्निंग तक, AI आज हर जगह अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुका है, लेकिन जहां एक ओर यह तकनीक हमारे कार्यों को आसान बना रही है, तो वहीं दूसरी ओर यह इंसानों की रचनात्मकता और मानसिक क्षमता को नुकसान भी पहुंचा सकती है।
माइक्रोसॉफ्ट और केर्नेजी मेल्लॉन यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक हालिया शोध में यह सामने आया है कि जनरेटिव AI का अत्याधिक उपयोग हमारी सोचने-समझने की क्षमता पर नकारात्मक असर डाल सकता है। इस अध्ययन के आधार पर चेतावनी दी गई है कि अगर हमने तकनीक का संतुलित उपयोग नहीं किया, तो यह हमारे दिमाग की वे क्षमताएं कमजोर कर सकती है जो अनुभव के साथ और अधिक तेज होती हैं।
शोध के अनुसार, जब लोग AI पर बहुत ज्यादा भरोसा करने लगते हैं, तो उनकी सोच समस्या सुलझाने और विश्लेषण करने से हटकर AI के उत्तर की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने तक सीमित रह जाती है। यह बदलाव हमारे निर्णय लेने और समालोनात्मक सोचने की क्षमताओं को भी कमजोर कर सकता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है। अध्ययन में शामिल कुल लोगों में से 64फीसदी लोग AI पर आंख मूंदकर भरोसा करते हैं।
इस अध्ययन में उन लोगों ने हिस्सा लिया, जो हर हफ्ते कम से कम एक बार जनरेटिव AI का इस्तेमाल करते हैं। इनसे यह पूछा गया कि वे AI का किस तरह से उपयोग करते हैं जैसे ईमेल लिखने, विषयों पर रिसर्च करने या डेटा चार्ट एडिट करने में। साथ ही यह भी जाना गया कि क्या वे इन कार्यों के दौरान स्वतंत्र रूप से सोचते हैं या पूरी तरह AI पर निर्भर रहते हैं।
रिपोर्ट में सामने आया कि 36 फीसदी प्रतिभागियों ने यह स्वीकार किया कि वे अब भी AI के साथ काम करते समय सावधानी बरतते हैं और संभावित जोखिमों का आकलन करते हैं, जबकि 64 फीसद लोग बिना किसी सवाल के AI की बातों पर पूरी तरह भरोसा कर लेते हैं। ऐसे लोगों में सोचने की प्रवृत्ति कम हो रही है, जिससे उनकी बौद्धिक क्षमताएं धीमी पड़ रही हैं।